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________________ 190 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : ज़बरदस्त पुण्य! राजा की तरह रखते थे। आज हाथ में कुछ भी नहीं था लेकिन पहले का कुछ होगा! प्रश्नकर्ता : पहले का होगा। दादाश्री : बहुत बड़ा पुण्य कहलाएगा। आपकी बात सही है। क्या पुण्य के बिना लोग उन्हें बुलाते? कोई खाना खाने भी नहीं बुलाता। बाहर (बैठाकर) भी खाना खाने नहीं बुलाते न ! बाहर बैठकर खाते, तब भी नहीं बुलाते। ये तो क्या कहते थे कि 'बाहर नहीं, अंदर घर में बैठाएँगे'। और लोगों ने बैठाया भी था, मैंने देखा है। मुझे भी बैठाते थे। ‘बच्चों को क्या धाड़ में देना है', इसलिए नहीं हुए बच्चे लोग मुझसे कहते हैं, 'आप दोनों ही भाई नि:संतान क्यों हैं ? क्या आप दोनों भाईयों का व्यवस्थित ही ऐसा है?' तब मैंने कहा, 'हमारे भाई से अगर कोई बच्चे की बात करता कि, 'आप बच्चों के लिए वापस शादी कीजिए, ' क्योंकि पहली बार की पत्नी से एक बेटा था, वह बेटा मर गया और पत्नी का भी देहांत हो गया। उसके बाद दूसरी बार फिर से शादी की और फिर तीसरी बार के लिए कह रहे थे, ‘फिर से शादी करो' तब बड़े भाई ने कहा, 'बच्चों को क्या धाड़ में देना है?' बोलो 'जहाँ पर ऐसी वाणी निकले तो वहाँ व्यवस्थित में ही नहीं होगा न!' अतः हम दोनों ही भाई ऐसे हैं। बच्चों-वच्चों की कुछ भी नहीं पड़ी थी। प्रश्नकर्ता : दादा, 'धाड़ में देना' जरा ये शब्द समझाइए न ! दादाश्री : 'सेना में भरती करवाकर लड़ने भेजना हो', उसे धाड़ में देना है, ऐसा कहते हैं। धाड़। धाड़ में कहा और हमारे यहाँ किसी पटेल को बेटा होने पर अगर वे पेड़े बाँटें, तब बड़े भाई क्या कहते थे? 'अरे भाई, अगर राजा के यहाँ जन्म हुआ होता तो ठीक है, सिर्फ एक दरांती (घास उखाड़ने का छोटा सा हथियार) ही बची है, उसमें क्या बाँटना?' वे तिरस्कार से उसे ऐसा कहते थे। एक बार हमारे मामा-मामी का एक छोटा बच्चा था, साल-डेढ़
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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