SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [7] बड़े भाई 181 लेकिन बा ने कहा कि 'भाई, कपाल तो तेरा अच्छा है'। ऐसा कहा तब से समझ गया। फिर मुझे समझाया कि कपाल कितना होना चाहिए? तब कहा, 'देख भाई, यह भाग, यह भाग, और यह भाग, (कपाल, कपाल से नाक और नाक से ठुड्डी) ये तीनों एक सरीखे दिखाई दें तो वह कपाल अच्छा कहा जाता है। इस तरह मुझे समझाया, मेरे मन का समाधान कर दिया उन्होंने। देखने जैसा वैभव था बड़े भाई का मणि भाई तो उस ज़माने में फर्स्ट क्लास कपड़े पहनते थे। ओहोहो! कैसे-कैसे कोट वगैरह सब! हाँ, तो हमारे भाई को सब चीजें कैसी चाहिए थीं? वे तो (ऐसे रहते थे) जैसे किसान के बेटे हों! उनकी गर्मी की ड्रेस अलग, बरसात की ड्रेस अलग वॉटर प्रूफ वाली और सर्दी की ड्रेस अलग। तो ऐसा था कि गर्मी में वे हेट पहनते थे, सर्दी में साफा पहनते थे और बारिश में रेनकोट पहनते थे। बारिश में ऐसी ड्रेस पहनते थे ताकि पानी अंदर न घुस जाए। अतः तीनों सीज़न की अलग-अलग ड्रेस थी। कपडवंज के पास हमारी दो सौ बीघा जमीन थी। वहाँ पर घोड़ीवोडी सब रखते थे। बड़े भाई उस घोड़ी पर बैठते थे तो घोड़ी ज़ोर से हिनहिनाती थी, और वे साफा पहनकर राजकुँवर की तरह घूमते थे। बड़े भाई प्रिन्स जैसे थे। प्रश्नकर्ता : आप भी बाँधते थे साफा? दादाश्री : राम तेरी माया! मेरी यह जो टोपी है, वैसी ही। उससे ज्यादा नहीं। प्रश्नकर्ता : आपने वैसा नहीं किया दादा? दादाश्री : मुझे ऐसा कुछ भी नहीं था। मैं तो सीधा था, भाई राजसी इंसान थे। जन्म से ही राजसी व्यक्ति थे और उन्होंने जैसा सुख देखा था, मैंने तो वैसा कोई सुख देखा ही नहीं।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy