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________________ [5.2] पूर्व जन्म के संस्कार हुए जागृत, माता के 159 लगता था इसीलिए फिर मैंने बा से पूछा कि 'कल दर्शन करने के लिए जाने के लिए ज़रूरत हो तो...' तब बा ने कहा 'भाई, मैं तो अपनी जिंदगी में सिर्फ यही मानती हूँ कि अगर दर्शन करने योग्य कोई है तो सिर्फ तू ही है। मैं कहीं भी दर्शन करने नहीं जाता था। तो हमारे घर में से हम दोनों लोग दर्शन करने के लिए नहीं गए किसी भी जगह पर। बा कहती थीं 'दर्शन करने के लिए तू तो घर में है ही, फिर मुझे दर्शन करने क्यों जाना है? मुझे दर्शन करने बाहर जाने की ज़रूरत ही नहीं है'। अतः बा कभी भी दर्शन करने नहीं गए। बा के लिए तो यही दर्शन, जो भी कहो सब, यही। 'मेरा भगवान तू है,' पहचान लिया था बा ने लोग क्या देह को नमस्कार करते हैं? नहीं, वे तो पूज्य गुणों की वजह से नमस्कार करते हैं। हमने अपनी बा से कहा था, 'अब आपको बाहर दर्शन करने जाने की ज़रूरत नहीं है। अब घर पर ही दर्शन करना'। तो हमारी बा रोज़ हमें नमस्कार करती थीं। बा तो कम्प्लीट मानती थीं कि 'तू भगवान हैं, मेरा भगवान तू हैं'। मैंने कहा भी था कि 'आपके यहाँ भगवान आए हैं', तब उन्होंने कहा, 'हाँ मेरे यहाँ आए हैं'। बा मानती थीं लेकिन बाकी सब लोगों को कैसे समझ में आए बेचारों को? समझ में आना चाहिए या नहीं? समझ में आए बिना क्या करते वे? हीरा हो फिर भी कोई ले जाए दो बिस्किट देकर। ले लेंगे या नहीं लेंगे? प्रश्नकर्ता : ले लेंगे। दादाश्री : इस दुनिया का आश्चर्य ही कहे जाएँगे ये दादा भगवान ! तेरी ऐसी बातें मुझे बहुत अच्छी लगती हैं प्रश्नकर्ता : दादा, क्या बचपन से ही बा का आपके प्रति ऐसा भाव रहा?
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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