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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
तरह से करते हो? आपकी आने-जाने की क्या क्रिया है ? हम सौ मार देते हैं तो फिर से ये दूसरे नए कहाँ से आ जाते हैं ?' तब उन्होंने बताया 'हमारा वंश कम नहीं होता, जितने मारोगे उतना आपको जोखिम रहेगा जबकि हम उतने के उतने ही रहेंगे'। 'इज इट पॉसिबल (यह संभव है)?' तब उन्होंने कहा, 'हाँ! क्योंकि दूसरे घरों से (हम) आ जाएँगे'।
तब आसपास में जो जैन थे न, उनके वहाँ मारने-करने का रिवाज़ तो था नहीं। इसलिए यह सब चलता ही रहता था, सारे बिस्तर बाहर डाल देते थे। अपने यहाँ पर कोई भी बिस्तर वगैरह बाहर सुखाने को नहीं डालता। बाहर नहीं डालते थे इसलिए वे सभी यहाँ अपने घर आ जाते थे, मुकाम करते थे। तब मैंने तो यह निष्कर्ष निकाला कि घर में जितने जीवजंतु होते हैं, यदि उन्हें बीन-बीनकर बाहर निकाल देते हैं, बाहर रख आते हैं तो फिर पड़ोस में रहने वालों को परेशानी। इसलिए इस पीड़ा से दूर ही रहो। यह तो चलता ही रहेगा। इसमें यदि चित्त रखेंगे तो अंत ही नहीं आएगा न! और अपने यहाँ मारने का नियम तो है ही नहीं। एक भी जीव को नहीं मारना चाहिए। ऐसा संयोग कहाँ से मिला आपको? ये अकर्मी कितने पाप बाँधते हैं, उसकी उन्हें खबर नहीं है! और खटमल को हम बना नहीं सकते तो फिर उन्हें मार कैसे सकते हैं? क्या आपको यह न्याय लगता है? नहीं मारना चाहिए न? अगर एक खटमल भी बना सको तब पता चलेगा। मारने की शक्ति है लेकिन उसमें यदि बनाने की शक्ति हो तभी मारना चाहिए। इस दुनिया में क्या कोई एक खटमल भी बना सकता है ? तो फिर नहीं मारना चाहिए। फिर भी यदि अक्ल काम करती रहे तो क्या करना चाहिए? 'भाई, इन गद्दों को बाहर डाल देना। बाहर बेचारे धूप में तप जाएँगे, फिर बीन-बीनकर इकट्ठे करना और फिर बाहर दूर कहीं फेंक आना'।
उन जीवों को मारने के बाद दूसरे जीव आएँगे या नहीं, उसकी क्या गारन्टी? जीवजंतुओं का साइन्स तो सिर्फ ज्ञानी ही जानते हैं। ये जीव उत्पन्न क्यों हुए हैं और क्यों मर जाते हैं ? वह इन मूर्ख लोगों को पता ही नहीं है। हर एक जीव अपनी आयु लेकर ही आता है, वहाँ ये