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ज्ञानी पुरुष (भाग-1)
प्रश्नकर्ता : बीस रुपए तोला सोना था न तब?
दादाश्री : बाईस-तेईस रुपए, तो वह नीयत क्या बहुत अच्छी नीयत कहलाएगी?
प्रश्नकर्ता : नहीं कहलाएगी। लेकिन फिर क्या किया उन रुपयों का, दादा?
दादाश्री : वे रुपए खर्च कर दिए, छोटे-मोटे कामों में। इन लड़कों के साथ खेलने में खर्च हो गए। अंदर जो मोह का जत्था इकट्ठा हुआ था न, उसमें खर्च हो गए। दोस्तों का कुसंग मिला था न! कुसंग हो तभी ऐसा सब करना आ जाता है वर्ना नहीं आता।
ज्ञान से पहले सभी जैसा ही कलियुगी जीवन
यह तो सभी जानते हैं कि अभी दादा को ज्ञान हो गया है। इसका मतलब क्या पहले का जीवन साफ-सुथरा बीता होगा! लेकिन क्या कलियुग में ऐसा साफ-सुथरा माल हो सकता है? जब गुस्सा हो जाता था न, तब ऐसा बोलता था कि सामने वाले का दिमाग घूम जाता था। फिर तीन-तीन, चार-चार घंटे तक वैसा ही रहता था। उसका मन नहीं टूटता था लेकिन दिमाग घूम जाता था। तब लोग भी कहते थे, ऐसा कैसा बोल रहे हो कि गधे का भी दिमाग़ घूम जाए? ज़रा, संस्कारों की कमी कही जाएगी वह।
___ मान के आधार पर यह शोभा नहीं देता
यह जो अँगूठी ली वह तो बहुत खराब संस्कार, ऐसा शोभा नहीं देता। बचपन में मैंने मान देखा है उस आधार पर यह शोभा नहीं देता। दो साल का था तब से लेकर अठारह साल तक मैंने मान देखा है। उस हिसाब से क्या यह शोभा देगा? जहाँ जाऊँ वहाँ पर मान, जहाँ जाऊँ वहाँ पर मान। अपमान तो देखा ही नहीं था। उस हिसाब से यह शोभा नहीं देता।