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[4] नासमझी में गलतियाँ
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बाकी, मैंने सभी तरह की शरारतें की हुई है। सभी तरह की शरारतें कौन करता है? बहुत टाइट ब्रेन (ज्यादा बुद्धिशाली) हो, वह करता है। मैं तो आराम से परेशान करता था सभी को, अच्छे-अच्छे लोगों की, बड़े-बड़े वकीलों की, डॉक्टरों की मज़ाक उड़ाता था। वह सारा अहंकार तो गलत ही है न! वह तो अपनी बुद्धि का दुरुपयोग किया न! मज़ाक उड़ाना तो बुद्धि की निशानी है।
प्रश्नकर्ता : मुझे तो अभी भी मज़ाक उड़ाने का मन होता है।
दादाश्री : मज़ाक उड़ाने में बहुत जोखिम है। बुद्धि में मज़ाक उड़ाने की शक्ति होती ही है और फिर उसका जोखिम भी उतना ही है तो हमने उन दिनों ऐसा जोखिम मोल लिया था। जोखिम ही मोल लेते रहे।
जोखिम मज़ाक उड़ाने का : भगवान के विरोधी बने
प्रश्नकर्ता : किसी का मज़ाक उड़ाया हो और उन्हें ज़रा दुःख हो जाए तो फिर उसके जोखिम क्या-क्या हैं ? किस-किस तरह के जोखिम हैं उसमें?
दादाश्री : ऐसा है न, यदि धौल लगाई होती न, तो उसमें जो जोखिम था उसकी बजाय यह तो अनंत गुना जोखिम है। उसका मज़ाक उड़ाने का। उसकी बुद्धि इतनी नहीं है इसीलिए आपने अपनी लाइट से उसे कब्जे में किया इसलिए फिर वहाँ पर भगवान कहते हैं, 'इसमें बुद्धि नहीं है तो उसका यह फायदा उठा रहा है !' ।
वहाँ पर हमने, खुद भगवान को अपना विरोधी बना दिया। किसी अक्ल वाले को धौल लगाई होती तो वह समझ जाता बेचारा
और वह खुद उसका मालिक बन जाता। जबकि इसकी तो वहाँ तक बुद्धि ही नहीं पहुँचती है, इसीलिए जब हम इसकी हँसी उड़ाते हैं तो यह खुद उसका मालिक नहीं बनता। तब भगवान समझते हैं कि 'ओहोहो! इसमें बुद्धि नहीं है, इसमें बुद्धि कम है, तो तू उसे फँसा रहा है? आ जा', कहेंगे तो भगवान विरोधी बन जाते हैं। वे तो फिर