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________________ 96 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) प्रश्नकर्ता : मुहम्मदअली और शौकतअली। दादाश्री : मुझे तो समझ में नहीं आता कि ये वणिक भाई मोढ, इन्होंने इन दो सिंहों को कैसे काबू किया होगा? ऐसे थे कि उन सिंहों को देखकर ही डर लगे। प्रश्नकर्ता : हाँ, दाढ़ी-वाढ़ी थी। दादाश्री : अरे! शरीर भी बहुत मज़बूत था। प्रश्नकर्ता : हाँ, और तब गांधी जी कठियावाडी पगड़ी पहनते थे। दादाश्री : पगड़ी पहनते थे उन दिनों, टोपी-वोपी नहीं। गांधी जी ने कहा, 'अभी तो यह पहली लपेट छोड़ी है, तभी से गवर्नमेन्ट को घबराहट हो गई है। अभी तो दूसरी लपेट छोड़ना बाकी है'। मैं सोच में पड़ गया। कहना पड़ेगा, इस काठियावाड़ी की लपेट! और आंटा एटला रांटा (जितनी लपेट उतने घुमाव)। विदेशी कपड़ों के बाइकॉट में बहुत सारे अति सुंदर कपड़े जला दिए थे। प्रश्नकर्ता : होली ही जलाते थे न ! दादाश्री : आल्पाका के कोट! वे जगमग-जगमग होते थे! प्रश्नकर्ता : तब लॉन्ग कोट पहनते थे न, सभी लोग! दादाश्री : उन दिनों धोती भी फॉरेन से ही आती थी न यहाँ पर? प्रश्नकर्ता : हाँ दादा! मैनचेस्टर की धोतियाँ। दादाश्री : हाँ, मैनचेस्टर की धोतियाँ। अपने यहाँ तो वहीं की धोतियाँ पहननी पडती थीं। हम भी मैनचेस्टर की धोतियाँ पहनते थे न! यह कमीज़ भी मैनचेस्टर का और टोपियाँ बेंगलोर से आती थीं। बेंगलोर की टोपी इतनी बड़ी, मियाँ भाई पहनते हैं, वैसी। आज तो आल्पाको दिखाई ही नहीं देता, लेकिन उन दिनों आल्पाको पहनने को मिलता था। क्योंकि पैसा सस्ता और सभी चीजें अच्छी मिलती थीं।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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