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[3] उस ज़माने में किए मौज-मज़े
उल्टी हो गई। अब उल्टी किन्हीं और कारणों से हुई, खीर के कारण नहीं लेकिन मुझे खीर से चिढ़ हो गई। उसके बाद से खीर देखते ही घबराहट होने लगती है। इसलिए जब मेरे घर पर खीर बनती थी तब मैं बा से कहता था कि, 'मुझे यह मीठा पसंद नहीं है, तो आप और क्या देंगे?' तब बा कहती थीं 'भाई, बाजरे की रोटी है। यदि तू घी-गुड़ खाए तो दे दूं'। तब मैंने कहा कि, 'नहीं, मुझे घी-गुड़ नहीं चाहिए'। फिर जब वे मुझे शहद देती थीं, तभी खाता था, लेकिन खीर को तो छूता तक नहीं था। फिर बा ने मुझे समझाया कि, 'भाई, ससुराल जाएगा तब कहेंगे कि क्या इसकी माँ ने खीर नहीं खिलाई कभी? वहाँ तुझे खीर परोसेंगे
और तू नहीं खाएगा तो खराब दिखेगा। तब फिर थोड़ा-थोड़ा खाना शुरू कर'। इस तरह से मुझे पटाया, लेकिन उससे कुछ बदला नहीं। वह चिढ़ घुसी तो घुसी।
फटी हुई धोती पहनी कला से प्रश्नकर्ता : दादा, आपको पहले से ही किसी भी चीज़ का हल निकालने की बहुत कला आती थी, एकाध-दो घटनाएँ बताइए न !
दादाश्री : मुझे (फटे हुए) कपड़ों को सिलने की छूट थी लेकिन पैबन्द लगाने की छूट नहीं थी। बचपन में एक बार शादी में जाना हुआ। मैंने पहनने के लिए धोती ली, तो बा ने कहा, 'फटी हुई है भाई'। तो मैंने कहा कि 'मैं इस तरह पहनूँगा कि फटा हुआ दिखाई ही नहीं देगा'। तब मैंने फटी हुई धोती पहनी और बा को दिखाई लेकिन बा को फटा हुआ दिखाई ही नहीं दिया। तब बा ने कहा कि 'तू बहुत कला वाला है'। फिर भी, वे सारी कलाएँ पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) की करामातें हैं। पहले मुझे ऐसा लगता था कि यह मेरी करामात है और मैं उसी में रचा-बसा रहता था। लेकिन ज्ञान होने के बाद मैं समझ गया कि यह पुद्गल की करामात है। अरे, यह पुद्गल की करामात तो जड़ की करामात है। अरे, चेतन की कला ढूँढ निकाल न! पुद्गल की करामात तो बंदर भी ढूँढ निकालते हैं, वह तो बंदर भी करते हैं।