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________________ [3] उस ज़माने में किए मौज-मज़े 77 दादाश्री : हाँ, सयाजीराव महाराज के वहाँ । तो हम कभी नवटांक (60 ग्राम) लाते थे। फिर घर आकर उसकी फाँक करके एक-एक परवल के तीस-चालीस फाँक करते थे। अक्ल वाले का काम है इसमें। मोटी फाँक नहीं करते थे और फिर मन में कहते थे कि 'हाश, आज तो परवल की सब्जी खाई, दो आने का नवटांक'। उसमें चार लोगों ने खाया। ऐसे फज़ीते थे सारे। अभी तो दस रुपए किलो लाते हैं, फिर भी वैसा नहीं मिलता। वैसा सब है ही नहीं। पहले जैसा खाने का कुछ भी है ही कहाँ? जितनी पैसे की कीमत, उतनी ही इंसान की कीमत दो पैसों की फर्स्ट क्लास चाय मिलती थी। इतनी अच्छी होती थी वह ! तीन पैसे देते थे तो स्पेशल चाय देता था, फर्स्ट क्लास दूध वाली। फिर चाय भी कैसी! प्रश्नकर्ता : अभी तो वैसी पीने को भी नहीं मिलती! दादाश्री : साढ़े तीन रुपए में पाँच रतल का लिप्टन की चाय का डिब्बा। लिप्टन का पैक, डिब्बा लेते थे। उस चाय का एक कप पी लें न, तो नशा रहता था एक-दो घंटे तक तो। अभी तो ऐसी चाय ही कहाँ मिलती है ? यह तो ठीक है। इसीलिए तब पैसे की इतनी कीमत थी। देखो ना, अब पैसों की कीमत ही नहीं है। लक्ष्मी की कीमत बढ़ने के साथ ही इंसानों की कीमत भी बढ़ जाती है। जब लक्ष्मी का भाव बढ़ेगा तब यह रुपया रुपए जैसा फल देगा और तब इंसान अच्छे बनेंगे। अभी यह रुपया फल ही नहीं देता है न! हमारा तो कॉन्ट्रैक्ट का बिज़नेस था तो सात दोस्तों को दिन भर चाय पिलाते थे, घोड़ा गाड़ी में-बग्गी में बैठाकर घुमाते थे पूरे दिन। सब साथ में ही घूमते रहते थे। दो ही रुपयों में! और अभी तो सौ में भी पूरा न पड़े। वैसा मज़ा नहीं आता। अभी वैसे घोड़े भी देखने को नहीं मिलते हैं न! हम जो घोडा गाडी में बैठे हैं ना, वैसे घोडे अब देखने को भी नहीं मिलते। घोड़े ऐसे, बिल्कुल राजा जैसे दिखाई देते थे! अब तो सबकुछ चला गया।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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