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________________ 48 ज्ञानी पुरुष (भाग-1) दादाश्री : उन दिनों इंसानों को हमारी भाषा में 'संख्या' कहते थे कि यह संख्या अच्छी नहीं है। पहले के समय में गुजराती भाषा में ऐसा बोला जाता था कि 'ये संख्याएँ अच्छी नहीं हैं'। मनुष्य से क्या कहते थे? कोई इंसान खराब हो तो मैं कहता था कि 'ये सभी संख्याएँ बहुत अच्छी नहीं हैं। उन्हें संख्या कहता था, इंसान नहीं कहता था। शब्द ही ऐसे बोलता था। तो चौदह साल की उम्र में मुझे यह विचार आया कि ये सब संख्याएँ (इंसान) किस तरह की हैं? इतना ही नहीं, ये कुत्ते, बिल्ली, गाय-भैंस, गधे ये सब संख्याएँ ही हैं। इस संख्या से यह संख्या मेच हो गई, मुझे यह माफिक आ गया इसलिए मुझे ऐसा लगा कि इन संख्याओं में भी फिर ऐसा ही है न! फिर मुझे पूरी रात नींद नहीं आई और सोचने लगा। अर्थात् भगवान सभी में अविभाज्य रूप से रहे हुए हैं, वह बात मुझे एडजस्ट हो गई। तभी से सारा हिसाब लगा दिया। चौदह साल की उम्र में परिणाम के विचार प्रश्नकर्ता : तब भी क्या आपको इन सब के बारे में पता था, उस उम्र में? दादाश्री : नहीं! उस उम्र में मुझे सिर्फ परिणाम के ही विचार आते थे। हर एक बात में परिणाम के ही विचार आते थे। इसका परिणाम क्या आएगा, वह मेरे सामने हाज़िर हो जाता था। मुझे वह अगले दिन समझ में आया कि यह तो 'भगवान' हैं कि जो हर एक संख्या में गाय में, भैंस में और इंसान में छोटी से छोटी चीज़ में भी भगवान हैं, जो अविभाज्य रूप से रहे हुए हैं। अतः भगवान लघुत्तम हैं। लघुत्तम का फल क्या आएगा? भगवान। अतः लघुत्तम से भगवान मिलते हैं, खास तौर पर मुझे ऐसा समझ में आया। भगवान लघुत्तम हैं, ऐसा उन दिनों मुझे समझ में आ गया था। कैसे हैं ? अविभाज्य, जिनके भाग नहीं किए जा सकते और जो सभी में रहते हैं, समान भाव से। प्रश्नकर्ता : वे सभी में कॉमन फैक्टर हैं।
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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