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________________ AA ज्ञानी पुरुष (भाग-1) हमारी पढ़ाई चित्त की गैरहाज़िरी में होती थी इसलिए फेल हो जाता था और बेवकूफ कहलाया। जब बड़े भाई आते न, तो यह पढ़ाई वगैरह नहीं देखते थे। सभी मास्टर जी उनके मित्र थे, तो सोमा भाई मास्टर जी ने मणि भाई से कहा कि 'आपका भाई है तो होशियार लेकिन ठीक से पढ़ता नहीं है'। तब भाई साहब ने मुझे डाँटा, 'तू ध्यान नहीं रखता है, पढ़ता नहीं है'। मैं वह सुन लेता था लेकिन मन में ऐसा होता था कि 'मुझे तो पूर्ण स्वतंत्र होना है'। तो 1958 में (जब ज्ञान हुआ तब) पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गया। वर्ल्ड का कल्याण करने का निमित्त लेकर आया हूँ ___ तब मास्टर जी तो मुझसे कहते थे, 'यहाँ भगवान-वगवान नहीं हैं। यहाँ पढ़ने के लिए आना है'। मैंने कहा, 'मैं भगवान ढूँढ रहा हूँ। मैं ऐसी पढ़ाई करने के लिए, मैं लोगों की नौकरियाँ करने के लिए यहाँ नहीं आया हूँ। मैं तो कुछ विशेष करने आया हूँ। कुछ नया ही करने आया हूँ। यह तो घर वाले मुझे ज़बरदस्ती दबाव डालकर भेजते हैं, मेरी इच्छा नहीं है। उनकी तो नौकरी करवाने की इच्छाएँ हैं, मैं नौकरी करने नहीं आया हूँ'। नौकरी में तो लोग रिटायर कर देते हैं। क्या कर देते हैं ? रिटायर कर देते हैं। बैल होता है न, उसे पांजरापोल (बूढ़े पशुओं की पशुशाला) में भेजकर रिटायर कर देते हैं, उसी तरह से उन्हें भी रिटायर कर देते हैं। 'अठावन साल का हो गया, रिटायर्ड! निकाल दो', कहते हैं। ___ इसलिए मैंने सोमा भाई सर को जवाब दे दिया। बहुत अच्छे इंसान थे और लागणी (लगाव, भावुकता वाला प्रेम) वाले थे! 'लेकिन मुझ पर बहुत लागणी मत रखना, मैं अलग ही तरह का इंसान हूँ। आपको पास करना है और मुझे फेल होना है, बोलो! मैं इस उलझन में नहीं पड़ना चाहता', कहा। मैंने पंद्रह साल इसमें निकाले होते तो भगवान को ऊपर से नीचे उतार लाता। इतना सब सामान लेकर आया हूँ, बेहिसाब सामान लेकर
SR No.034316
Book TitleGnani Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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