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________________ (१.२) क्रोध-मान-माया-लोभ, किसके गुण? क्रोध-मान-माया-लोभ, राग-द्वेष वगैरह विशेष गुण उत्पन्न हुए हैं। बाकी, आत्मा का मूल स्वभाव वीतराग है। जड़ को राग-द्वेष हैं ही नहीं, वह भी वीतराग ही है। तो ये राग-द्वेष कहाँ से उत्पन्न हुए? तो कहते हैं, 'विशेष गुण उत्पन्न होने से'। क्रोध-मान-माया-लोभ गुरु-लघु स्वभाव वाले हैं। आत्मा अगुरु-लघु स्वभाव वाला है। जड़ भी अगुरु-लघु स्वभाव वाला है। दोनों के गुणधर्मों में फर्क है न! आत्मा कभी भी खुद के गुणधर्मों में से बाहर नहीं निकला है। वह खुद के गुणधर्मों में ही रहता है, उसके स्वाभाविक गुण हैं। जिस प्रकार स्टेनलेस स्टील पर जंग नहीं लगता, बरसात, कीचड़ का असर नहीं होता, उसी प्रकार कीचड़ (संसार रूपी कीचड़) में रहने के बावजूद भी हम पर जंग नहीं लगता। यह आत्मा विभाविक (विरुद्ध भावी) नहीं हुआ है, लेकिन यह विशेष परिणाम है। यह कुछ भी नहीं है, मात्र भूत चिपके हैं और वे भी फिर मुद्दत वाले हैं। जिसकी मुद्दत पूरी होने को आई हो उसे मैं छुड़वा देता हूँ। कुछ टाइम कम-ज्यादा कर देते हैं। लेकिन अगर फॉरेनर्स कहें तो उन्हें नहीं छुड़वाया जा सकता। इसीलिए यह पज़ल कहलाता है न! और वह किस प्रकार से पज़ल बन गया है, वह मैं देखकर बता रहा हूँ। यह गप्प नहीं है, एक्जेक्ट है, जैसा है वैसा। यह भ्रांति भी नहीं है। यह तो, लोगों ने इसे भ्रांति का नाम दे दिया है। कुछ भी समझ में नहीं आया तब भ्रांति कह दिया। कहने में फर्क है, ज्ञानी-अज्ञानी के इन विशेष गुणों को व्यतिरेक गुण कहा जाता है। जो कि इस जड़ में भी नहीं हैं और इस चेतन में भी नहीं हैं। फिर जो अपना माने उसी का। 'यह मुझे हो रहा है', मालिकी माने उसका। प्रश्नकर्ता : यह व्यतिरेक गुण आत्मा का नहीं है और न ही पुद्गल का है, तो फिर ये दोनों, आत्मा और पुद्गल साथ में हैं तो तब तक यह किस पर लागू होता है? यह व्यतिरेक गुण किसका कहा जाएगा?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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