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________________ (१.१) विभाव की वैज्ञानिक समझ दादाश्री : पहले मूल आत्मा विशेष भावी हुआ क्योंकि उसमें चेतन है न! उन सब में चेतन नहीं है इसलिए पहले विशेष भाव उत्पन्न नहीं होता। खुद का स्वरूप जैसा है, उसे वैसा ही रखकर विशेष भावी बना है। खुद के स्वरूप में बदलाव नहीं हुआ इसीलिए विशेष भाव कहते हैं न! यदि स्वरूप में परिवर्तन हुआ होता तो विरुद्ध भाव कहलाता। यह तो विशेष भाव उत्पन्न हो गया है इसलिए आत्मा मूल भाव को चूक जाता है। यह (जड़) भी मूल भाव को चूक जाता है। विशेष भाव दोनों के मिलने से ही होता है। कोई करता नहीं है इसलिए दोनों मूल भाव को चूक जाते हैं और संसार की शुरुआत हो जाती है। फिर जब आत्मा मूल भाव में आता है, खुद जान जाता है कि 'मैं कौन हूँ, तब वह मुक्त होता है। उसके बाद में पुद्गल भी मुक्त हो जाता है। ज्ञान नहीं, बदली है मात्र बिलीफ आत्मा की विमुखता से लेकर सम्मुख होने तक की ये सारी क्रियाएँ चलती रहती हैं। तो कितनी ही बातों में आपकी (महात्माओं के लिए) ये मान्यताएँ टूट चुकी हैं और कितनी ही बातों में अभी मान्यताएँ बाकी रही हुई हैं, और संसारियों को जैसे-जैसे अनुभव होते हैं न, वैसे-वैसे कुछ-कुछ मान्यताएँ टूटती जाती हैं। हमारी सभी मान्यताएँ संपूर्ण रूप से छूट चुकी हैं। अर्थात् यदि ये मान्यताएँ छूट जाएँ न, तो खुद मुक्त ही है। इसमें ज्ञान नहीं बदला है, मान्यताएँ बदल गई हैं। चिड़िया का यदि ज्ञान बदल गया होता न, तो वह चोंच मारमारकर मर ही जाती। लेकिन ज्ञान नहीं बदला है, उसकी बिलीफ बदली है फिर वहाँ से उड़ने के बाद कुछ भी नहीं। जब वापस आती है तब वापस बिलीफ खड़ी हो जाती है कि 'यह वही है। लेकिन अगर वापस उड़ जाए तो कुछ भी नहीं। उसमें तो उड़ने के बाद अगर यह ज्ञान बदल जाए तो खत्म ही हो जाएगा। लेकिन ज्ञान नहीं बदलता। अर्थात् दर्शन में भ्रांति है, ज्ञान में भ्रांति नहीं है। दर्शन में भ्रांति यानी कि 'मैं हूँ' उसका भान है लेकिन वह 'मैं' क्या है, उसकी खबर
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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