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________________ (१.१) विभाव की वैज्ञानिक समझ हुआ नहीं है लेकिन संयोगों से घिरा हुआ है परंतु वे निकट संयोग हैं इसलिए 'आपको' भ्रांति हो जाती है । भ्रांति की भवाई, सामीप्य भाव से प्रश्नकर्ता : अब, दादाजी इस 'सामीप्य भाव को लेकर भ्रांति उत्पन्न होती है', वह ठीक से समझाइए | ३ दादाश्री : इस शरीर में पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है ) और आत्मा दोनों के एकदम नज़दीक होने के कारण अर्थात् इसके दबाव को लेकर भ्रांति उत्पन्न हो जाती है कि 'मैं यह हूँ या वह हूँ ?' इसके दबाव के कारण ऐसा होता है । कोई क्रिया हो जाए तो कहता है 'मैंने की या किसी और ने की ? और कौन है करने वाला ?' यानी यह भ्रांति उत्पन्न होती है। खुद ने कुछ भी नहीं किया है । आत्मा कर्ता है ही नहीं लेकिन 'उसे' ऐसा लगता है कि, 'करने वाला अन्य और कौन है ? मैं ही हूँ, मैंने ही किया है'। वह नज़दीक है न, इसलिए उसे भ्रांति उत्पन्न हो जाती है। दूसरा कोई करने वाला है नहीं और खुद कर्ता नहीं है फिर भी कहता है 'मैंने किया, वही भ्रांति है । वह बंधन का समीकरण है, तो हम इन दोनों को अलग कर देते हैं कि 'यह आप नहीं हो', तो अलग हो गया। प्रश्नकर्ता : पुद्गल परमाणुओं की चंचलता हैं, क्या इसी वजह से आत्म तत्त्व को भ्रांति हो जाती होगी ? दादाश्री : नहीं, तब तो फिर यह सामने वाले का गुनाह हुआ । हम पर क्या असर हो सकता है ? यह तो, दो वस्तुओं के साथ में रहने से विशेष गुण उत्पन्न हो जाता है । प्रश्नकर्ता : वह तो ठीक है लेकिन दो वस्तुएँ साथ में क्यों आती दादाश्री : छ: शाश्वत वस्तुएँ पहले से ही साथ में हैं लेकिन ये दो वस्तुएँ, जड़ और चेतन ऐसी हैं कि विशेष गुण उत्पन्न हो जाता
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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