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________________ अनुक्रमणिका [ खंड-१ ] विभाव - विशेषभाव - व्यतिरेक गुण [१] विभाव की वैज्ञानिक समझ विश्व की उत्पत्त का मूल कारण भ्रांति की भवाई, सामीप्य भाव से ज्ञान नहीं, बदली है मात्र बिलीफ पहला मिलन परमात्मा से विभाव के बाद में व्यतिरेक स्वाभाविक और विभाविक पुद्गल अहंकार चिंतन करता है और.... व्यतिरेक में मुख्य, अहम् १ ३ [२] क्रोध - मान-माया - लोभ, किसके गुण ? ७ १० ११ ११ १३ १५ वे हैं व्यतिरेक गुण १७ २० भ्रांति कहता है, वह भी भ्रांति कहने में फर्क है, ज्ञानी - अज्ञानी के २१ [ ३ ] विभाव अर्थात् विरुद्ध भाव ? परिभाषा विभाव की २३ क्या मेरा आत्मा पापी है ? २५ रागादि भाव नहीं हैं आत्मा के ३० कर्तापन से रचा संसार ३१ पूरी प्रतिष्ठा सर्जित... ३२ ३३ व्यवहार आत्मा ही अहंकार है संसार अनौपचारिक, व्यवहार से... ३४ विशेष स्पष्टता, विभाव अवस्था की...३५ प्रेरणा इसमें पावर की ३७ 67 [ ४ ] प्रथम फँसाव आत्मा का वर्ल्ड, इट सेल्फ पज़ल नहीं है आदि अज्ञानता की ३९ ३९ भ्रमणाएँ सारी बुद्धि की ४० अंत है लेकिन आदि नहीं कर्म की ४२ यात्रा, निगोद से सिद्ध तक की ४३ संयोगों के दबाव से सर्जित हुआ... ४६ तिरछी नज़र और चिपक पड़ा ४७ क्या मुखड़ा नहीं दिखाता दर्पण.... ४९ [ ५ ] अन्वय गुण-व्यतिरेक गुण 'गुणधर्मों' से हुआ विशेष भाव वे कहलाते हैं अन्वय गुण ५१ ५२ ५४ सद्गुणों की कीमत नहीं है वहाँ अंत में तो अलग रखना है, जीतना... ५५ अमल, वही है मोहनीय ५७ ५९ नहीं है आत्मा की कोई वंशावली अज्ञान तो खड़ा हो गया ६० रोंग बिलीफ उत्पन्न हो गई, विशेष.. ६२ [ ६ ] विशेष भाव - विशेष ज्ञान अज्ञान अज्ञान भी ज्ञान ही है वास्तव में वह नहीं है भ्रांति फर्क, विशेष भाव और विशेष... विभाव के बाद प्रकृति और पुरुष प्रकृति बनी प्रसवधर्मी, परमाणुओं... ७३ ७२ ६६ ६८ ७०
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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