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________________ टूट जाए तो लंगड़ा, टाइप करे तो टाइपिस्ट, ड्राइव करे तो ड्राइवर। सबकुछ रिलेटिव है, रियल में तो दुनिया गड़बड़ घोटाला है। जन्म होना आदि है और मृत्यु अंत है जबकि आत्मा अनादि अनंत है। जो जीता और मरता है, वह जीव है। जन्म-मरण भ्रांति है। वास्तव में तो यह अवस्था परिवर्तन है। ज्ञानी की भाषा जगत् से न्यारी है। आत्मा ज्ञानी नहीं है, ज्ञानी का फेज़ है, उसे देखते रहना है। कॉज़ेज़ व इफेक्ट अवस्था में होते हैं, तत्त्व में नहीं। बुद्धि अवस्था को स्वरूप मनवाती है, तब यदि दादा को याद करके कहे कि 'मैं वीतराग हूँ' तो बुद्धि बहन बैठ जाएगी! ज्ञान के बाद में ज्ञेय-ज्ञाता संबंध को मात्र जानना है। भ्रांति से आत्मा के बारे में जो कुछ भी सोचा हुआ है, वह ज्ञाता-ज्ञेय के संबंध को जानने से ही चला जाता है। उसके बगैर नहीं जा सकता क्योंकि आत्मा की उपस्थिति में तन्मयाकार होने से विचार स्टेम्प वाले हो जाते हैं। 'मैं' में पड़ने से अवस्था में अस्वस्थ और स्व में स्वस्थ हो जाता है अर्थात् परमात्मा। दर्पण में हिमालय दिखाई दे तो क्या दर्पण को उससे भार महसूस होगा? ज्ञानी को संसार अवस्था स्पर्श ही नहीं करती तो भार कहाँ से? सभी पर्यायों के, सभी सूक्ष्म संयोगों के शुद्ध होते ही वह अनंत ज्ञानी बन जाता है। संक्षेप में समझ जाओ कि 'मैं आत्मा हूँ, और बाकी सभी पर्याय हैं', तो जल्दी से अंत आ जाएगा। आत्मा की विभाविक अवस्था में रहने से राग-द्वेष हैं और स्वाभाविक अवस्था में रहने से वीतराग! मन-वचन-काया की अवस्था में मुकाम करे तो वहाँ अस्वस्थ, 64
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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