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________________ पुद्गल परिणाम यानी कि पौद्गलिक पर्याय किसे कहेंगे? पुद्गल में से पुद्गल परिणाम ही उत्पन्न होते हैं और चेतन में से चेतन परिणाम ही उत्पन्न होते हैं। पूरा जगत् अचेतन पर्याय से ही चल रहा है। ज्ञानी पर उसका असर नहीं होता, अज्ञानी पर असर होता है। ___ सभी के सार के रूप में अंत में परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, पर्याय समझ में नहीं आएँगे तो क्या मोक्ष में नहीं जा सकेंगे? जा सकेंगे क्योंकि मोक्ष तो ज्ञानी की पाँच आज्ञा के पालन से होगा। __ ये पर्याय बहुत सूक्ष्म चीज़ हैं। उनमें बहुत गहरे नहीं उतरना है। हमें स्पिनिंग करना (मोटा कातना) है, बाद में वीवींग (बुनाई) करते समय देखा जाएगा। हमें ऐसा कहना है कि 'द्रव्य-गुण-पर्याय से मैं संपूर्ण शुद्ध हूँ'। बाकी, उसमें से कुछ भी समझ में नहीं आएगा, और अगर समझ में आ गया तो वह केवलज्ञान स्वरूप में आ गया। (३) अवस्था के उदय-अस्त आत्मा के पर्याय उसके खुद के प्रदेश में रहकर बदलते हैं। स्वाभाविक आत्मा तो वही का वही है, टंकोत्कीर्ण है। पुद्गल की अवस्थाएँ हैं और (विभाविक) आत्मा की भी अवस्थाएँ हैं। वह उन दोनों को मिलाकर 'खुद' सिरफोड़ी करता है। __ वास्तव में कर्मरज किसे और किस प्रकार से चिपकती है ? वास्तव में कर्मरज आत्मा के द्रव्य पर, गुण पर या पर्याय पर नहीं चिपकती। यदि चिपक जाए तो फिर उखड़ेगी ही नहीं न! इसलिए वास्तव में तो भ्रांतिरस से खुद ऐसा कहता है कि, 'मैंने यह किया' और 'यह मेरा है'। अतः पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) और आत्मा के बीच में भ्रांतिरस टपकता है। उसी से यह चिपका हुआ है, बस। ज्ञानी द्वारा भ्रांतिरस विलय करने के बाद ऐसा हो जाता है कि 'यह मैंने नहीं किया और यह मेरा नहीं है' और उसके बाद द्रव्य अलग हो जाता है। 58
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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