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________________ २७६ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) दुनिया के लोग हर एक अवस्था में, मन की, वाणी की या काया की अवस्था में लाखों बीज डाल देते हैं। उनमें तीन हज़ार गेहूँ डालता है और बाकी के कूच (जंगली पौधा) के। अवस्था उत्पन्न होती है तब बीज डलता ही है लेकिन ज्ञान के बाद में अवस्थाओं का निकाल होता जाता हैं, स्वाहा होती जाती हैं। अवस्थाएँ डिस्चार्ज होती रहेंगी। हमें यह देखना है कि चार्ज न हों। भगवान कहते हैं, 'ऑन द मोमेन्ट जो अवस्थाएँ हो गईं उनमें रह और जो अवस्थाएँ हुईं और चली गई हैं, उनके लिए तू झंझट मत करना। अवस्थाएँ बिचारी भोली होती हैं। जब आती हैं तब उनसे कहना कि 'बहन! आ गई? अब जाओ, दूसरी को आने दो'। कोई गाली दे तो अंदर अवस्था बिगड़ जाती है। यदि आत्मा उस अवस्था को जाने तो अवस्था स्वाहा हो जाएगी। अवस्था को जितना जाना, उतनी ही स्वाहा हो जाती है। जितनी रह जाती हैं, वे तो फिर बाद में मिटेंगी। अंदर मन बिगड़ जाए तो फिर मन से कहकर प्रतिक्रमण करके मिटा सकते हैं। जब तक कागज़ पर लिखा हुआ पोस्ट में नहीं डाल देते, तब तक मिटा सकते हैं। ___ अवस्था तो प्रतिक्षण बदलती है न! हर एक अवस्था में, अज्ञान दशा में बीज डलता ही रहता है। लेकिन जब ज्ञान से जागृत अवस्था में हर एक अवस्था स्वाहा हो जाती है तब फिर से संसार बंधन नहीं होता। अपना यह ज्ञान ऐसा है कि इससे विषय का विरेचन होता है। अंदर विचार आते ही अवस्था उत्पन्न हो जाती है और तुरंत ही उसकी आहुति दे दी जाती है। क्योंकि वह खुद की अवस्था के गुनहगार को ढूँढ ही निकालता है। प्रत्येक अवस्था की आहुति स्वाहा, यह अंतिम आध्यात्मिक यज्ञ है। स्वाहा अर्थात् संपूर्ण जला देता है। राज़ी खुशी से अवस्था में तन्मयाकार हो जाए तो दखल हो जाती है। उससे नया चित्रण करता है और नए
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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