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________________ (२.४) अवस्थाओं को देखने वाला 'खुद' २७१ लेकिन नया कुछ नहीं होगा, मात्र अवस्थाएँ बदलेंगी। अवस्थाएँ और खुद अलग नहीं दिखाई देते। सोच और सोचने वाला, दोनों अलग नहीं दिखाई देते। जब तक ज्ञान नहीं मिलता तब तक आपको सभी में ये एक साथ ही दिखाई देते हैं। आत्मा अलग ही है। जिसमें अवस्थाएँ नहीं बदलें वह संसार कहलाएगा ही नहीं। प्रश्नकर्ता : दादा! आपने कहा कि तत्त्वों के इक्टठे होने से अवस्थाएँ बदलती रहती हैं, उन अवस्थाओं की वजह से जो अहम् खड़ा होता है, क्या वह अहम् भी बदलता होगा? उस समय क्या किसी में कम या ज्यादा रहता होगा? दादाश्री : ऐसा है न, वे जो अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं न, उनका तो तुरंत ही विनाश हो जाता है। और यह अहम् वगैरह जो सब उत्पन्न हुए हैं न, तो वे तो इन दो चीज़ों के इकट्ठे होने से व्यतिरेक गुण उत्पन्न होता है। उससे अहंकार खड़ा हो जाता है (वह केवलज्ञान होने तक रहता है)। बदलती हैं अवस्थाएँ पल-पल आत्मा त्रिकालवर्ती है। भाव त्रिकालवर्ती नहीं हैं, अवस्थावर्ती हैं। जो अवस्थावर्ती है, वह चेतन नहीं है। जो अवस्थावर्ती नहीं है, वह चेतन है। इन मोटर, बंगले और ज़मीन को अगर हम अभी नहीं छोड़ेंगे फिर भी एक दिन तो इन्हें छोड़कर जाना ही पड़ेगा। एक मात्र सच्चिदानंद करने जैसा है। (विनाशी मोह को छोड़कर आत्मा की भक्ति करने जैसा है।) गुण नहीं बदलते, पर्याय बदलते हैं। आज दूध मीठा लगता है लेकिन दूसरे दिन खट्टा लगने लगता है। फिर उसे सूंघना भी अच्छा नहीं लगता। परमाणु मात्र प्रत्येक क्षण बदलते ही रहते हैं। कपास के पौधे बोए तो अंकुर उगने पर वह खुश हो जाता है। लेकिन उसके खत्म होने तक अनंत अवस्थाएँ, अच्छी-बुरी अवस्थाएँ
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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