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________________ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) आत्मा की विभाविक अवस्था के कारण राग-द्वेष हैं और स्वाभाविक अवस्था के कारण वीतरागता है । २६८ 'आपका' मुकाम किसमें ? अवस्था में खुद के मुकाम करने से अस्वस्थ हो जाता है और खुद के स्वरूप में अर्थात् परमानेन्ट में रहने से स्वस्थ रहता है । अस्वस्थता आपने देखी है? जिस समय तक चंदूभाई थे, तब तक अस्वस्थता ही थी और अब शुद्धात्मा में आ गए, अर्थात् खुद के स्वरूप में रहते हो तो स्वस्थ । जब तक ऐसा है कि ‘मैं चंदूभाई हूँ' तो वह अवस्था कहलाएगी। ‘पटेल हूँ' तो वह अवस्था है, 'मैं पचास साल का हूँ' तो वह अवस्था है, 'मैं एग्जीक्यूटिव इंजीनियर हूँ', वह अवस्था है, सभी अवस्थाएँ हैं। उन अवस्थाओं में स्वस्थता नहीं रह सकती । लोग पूछते हैं कि 'स्वस्थ हो न ?' तब कहते हैं कि 'नहीं भाई, स्वस्थ कैसा ? अस्वस्थ' । जो अवस्था में मुकाम करता है, वह कैसा होता है ? अस्वस्थ । निरंतर, एक क्षण भी चूके बगैर वस्तु में मुकाम करेगा तो स्वस्थ रहेगा। चाहे प्रधानमंत्री हो, प्रेसिडेन्ट हो या कोई भी हो, अस्वस्थ ! निरंतर ! प्रश्नकर्ता: दादाजी ! इसमें बात ऐसी है कि अस्वस्थ में रहने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता । स्वस्थ में जाते हैं, क्षणिक उसमें रहते हैं और फिर वापस अस्वस्थ में आ जाते हैं । यही परेशानी है । दादाश्री : परेशानी कैसी इसमें ? अस्वस्थता में बुरा क्या है ? प्रश्नकर्ता: नहीं ! हमें स्वस्थ में जाना है, उसमें अधिक रहना है I दादाश्री : वह तो फिर जब से आप तय करेंगे, तभी से स्वस्थ रह पाएँगे। ये मन-वचन-काया की अवस्थाएँ, जितना हम इनमें मुकाम करते हैं, उतने ही अस्वस्थ रहते हैं, निरंतर अंतरदाह जलता ही रहता है और स्व में, तत्त्व स्वरूप में मुकाम करेंगे तो स्वस्थ रह पाएँगे ।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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