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________________ २५२ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) उनमें एक को पालक कहते हैं, एक को सर्जक और एक को संहारक कहते हैं, तो इन दोनों में कोई साम्य है क्या? इस बात में? दादाश्री : मूल वस्तु आत्मा है। अब उसके खुद के जो मूल गुण हैं, उनके अलावा के जो पर्याय हैं, उनका उत्पन्न होना, विनाश होना और आत्मा खुद स्वभाव से ध्रुव है, इस प्रकार से इन तीन चीज़ों को रखा गया है। यह पुद्गल है, यह पुद्गल उत्पन्न हुआ, इसका विनाश हुआ। जड़ वस्तु भी स्वभाव से ध्रुव है। इसलिए इस आधार पर गठित है यह सारा। ये ब्रह्मा, विष्णु, महेश क्या हैं ? वह उत्पन्न होती हुई जो स्थिति है, वहाँ लोगों ने ब्रह्मा को रखा, जहाँ सर्जन होता है, वहाँ पर। फिर जहाँ विसर्जन और विनाश होता है, वहाँ पर महेश को रखा और जहाँ ध्रुवता है, वहाँ पर विष्णु को रखा। अतः ब्रह्मा, विष्णु और महेश। फिर वे मूर्तियाँ रखीं और फिर सब लोग उसे कहाँ तक ले गए कि 'इन मूर्तिओं की पूजा करना!' अपने में ये जो तीन गुण बताए गए हैं न, पित्त, वायु और कफ (क्रमशः सत्व, रज व तम गुण)। बहुत साइन्टिफिकली रखा है। यह यों ही नहीं रख दिया है, यह बहुत ही गहरा आयोजन किया गया है। उसके बाद सब उलझा दिया! ब्रह्मा को ढूँढने जाएँ तो कहाँ मिलेंगे? दुनिया में किसी जगह पर मिलेंगे ब्रह्मा? विष्णु को ढूँढ आओ। तो क्या विष्णु मिलेंगे? और महेश्वर! हम पूछे कि 'क्या धंधा है उनका? व्यापार क्या है?' तब कहते हैं, 'ब्रह्मा सर्जन करते हैं, विष्णु ये सब चलाते हैं, पोषण करते हैं और वे संहारक, महेश संहार करते हैं। अरे भाई! संहार करने वाले के भी कभी पैर छूने होते हैं? प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, ऐसी कैसी कल्पना करके रख दी कि कितने ही वर्षों से वह कल्पना चली आ रही है ? दादाश्री : मूल वस्तु का पता नहीं चल पाता। मैंने उसे ढूँढकर अब लोगों में बताना शुरू कर दिया है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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