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________________ २३८ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) प्रश्नकर्ता : आत्मा के पर्याय पर तो कुछ भी नहीं चिपकता न, दादा? दादाश्री : हाँ, उसके पर्याय को भी कुछ नहीं होता और इसके (जड़ के) पर्याय को भी कुछ नहीं होता। यह तो चीज़ ही अलग है। ऐसा यदि समझ गए होते न, तब तो ये सभी मुक्त ही हो जाते न! इसे बुद्धि से तोलते रहे। इसमें तो क्या है कि नाम मात्र भी नहीं चिपका, नाम मात्र को भी कुछ नहीं हुआ है। चिपकता कितना है ? जब भ्रांतिरस से कहता है कि 'यह मैंने किया', तब इन दो द्रव्यों के बीच में रस डलता है। मैंने किया का' भ्रांतिरस डलता है। उसी की वजह से चिपका हुआ है, बस! बाकी कुछ भी चिपका हुआ नहीं होता। आत्मद्रव्य और पुद्गल द्रव्य, 'मैंने किया और यह मेरा', इन दोनों में से भ्रांतिरस उत्पन्न होता है और भ्रांतिरस डलता है। जब 'मैंने नहीं किया और यह मेरा नहीं है', ऐसा होगा उस दिन से भ्रांतिरस नहीं डलेगा तो अलग हो जाएगा। अतः ज्ञानी पुरुष उस भ्रांतिरस को विलय कर देते हैं, उसके बाद द्रव्य अलग हो जाता है। वस्तु अविनाशी और अवस्थाएँ विनाशी अवस्थाओं का उदय हुआ तो उनका अस्त होगा ही। मूल वस्तु का उदय व अस्त नहीं होता। फेज़िज का उदय और अस्त होता है। मनुष्यपन का उदय होता है और वह अस्त होगा। भैंस का उदय होता है और भैंसपन का अस्त होगा ही। मनुष्यपन आत्मा का फेज़ है। गधा भी आत्मा का फेज़ है। चंद्र में बीज, तीज, पूनम, उसके फेज़िज हैं। गधा भी मनुष्य में से ही बनता है। गधे का एक गुण उसने डेवेलप किया ही होता है, इसीलिए उस गुण के संयोगी प्रमाणों के आधार पर गधा बनता है। मनुष्यपन में जो गुण अधिक डेवेलप होता है, उस डेवेलपमेन्ट के अनुसार जन्म होता ही है। जीवमात्र अनंत जन्मों से भटक रहा है। वह अलग-अलग अवस्थाओं में भटका है। कुत्ता, गधा, गाय, घोड़ा, भैंस, बैल, मनुष्य,
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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