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________________ २३४ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) प्रश्नकर्ता : शब्द में नहीं समा सकता, ऐसा नहीं है। शब्दों से यह जानने का प्रयत्न कर रहे हैं। दादाश्री : पर्याय शब्द का उपयोग तो इस संसार में होता है। शब्द का उपयोग इस तरह नहीं करना चाहिए लेकिन लोग तो इसे ले बैठे हैं। पर्याय शब्द सिर्फ सत् वस्तु पर, अविनाशी वस्तु पर ही लागू होता है। अन्य किसी भी जगह पर पर्याय लागू नहीं होता। फिर भी आपके इस साइन्स की भाषा में जो पर्याय कहते हैं न! शब्दों में बोलते हैं उतना ही, बाकी वहाँ तक पहुँचना बहुत मुश्किल है। इसे समझकर ज़रूर रखना है, पर्याय में तो उतरने जैसा नहीं है। बहुत सूक्ष्म बात है। समझ रखा होगा तो कभी ऐसा लगेगा कि हम इसे समझे हैं। बाकी, यह दर्शन में नहीं आ सकता। प्रश्नकर्ता : यह तो मैं यों ही पूछ रहा हूँ, इसका अन्य कोई प्रयोजन नहीं है। दादाश्री : नहीं, उसमें हर्ज नहीं है लेकिन दर्शन में भी नहीं आ सकता, चाहे उसे मैं कितना भी समझाने जाऊँ। प्रश्नकर्ता : हाँ! वह बात ठीक है। सही है। दादाश्री : जब हम उसे मोटा कातते हैं न, तो वह स्पिनिंग (कातना) मिल कहलाता है। फिर वीविंग (बुनना) का बाद में देख लेंगे। पर्याय बहुत बड़ी चीज़ है। साधु-सन्यासी, आचार्यों को, किसी को समझ में नहीं आता। यह जगत् पुद्गल के पर्यायों में ही उलझा हुआ है। जो दिखाई देते हैं, वे सभी पुद्गल के पर्याय हैं, मोटा कातना अच्छा है। हमें बहुत बारीक नहीं कातना है। हम तो यदि इन पाँच आज्ञाओं में रहें न, तो बहुत हो गया। इन वीतरागों के विज्ञान की थाह पाना मुश्किलं है। बहुत अद्भुत विज्ञान है ! हमें इसकी थाह पाने की क्या जल्दी है अभी! एक जन्म-दो जन्म हो जाएँगे, उसके बाद आगे कभी न कभी थाह मिलनी ही है? कभी न कभी इसे जाने बिना चारा ही नहीं रहेगा न! अभी के अभी तो समझ में नहीं आ सकता न! कैसे समझ में आएगा?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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