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________________ (२.२) गुण व पर्याय के संधि स्थल, दृश्य सहित २२३ शुद्ध ज्ञान दशा में देखा शुद्ध ही ऐसा समझना है कि ये पर्याय विनाशी हैं और ज्ञान अविनाशी है। पर्याय विनाशी चीज़ों को (विनाशी रूप में) नहीं देख सकते । (विनाशी संबंध को सही मानते हैं, नित्य मानते हैं ।) जब विनाशी को 'विनाशी है', ऐसा देखने की शक्ति आ जाती है तब वह ज्ञान कहलाता है । बाकी तो जो है उसे उसी रूप में देखता है, पुद्गल को देखता है । अन्य कुछ नहीं है। पुद्गल अर्थात् विकृत परमाणु । प्रश्नकर्ता : पुद्गल (विकृत परमाणु) के रूप में देखता है, यानी विनाशी रूप में देखता है, इसी प्रकार से हुआ न ? दादाश्री : हाँ, इसी प्रकार से । प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या ऐसा है कि उसमें विशेषता की तरह नहीं होता, सामान्य भाव से होता है ? दादाश्री : मूल तो शुद्धात्मा है, उसे ऐसा कुछ देखने की पड़ी नहीं है न! केवलज्ञान ही है और वह अविनाशी है । और इसलिए कहते हैं कि जगत् निर्दोष है, वह हमारा शुद्ध दर्शन है । वह शुद्ध ज्ञान में आना चाहिए। प्रश्नकर्ता : और जब शुद्ध ज्ञान में आता है तब क्या होता है ? दादाश्री : सर्वज्ञ ! फिर कोई दावा करने का रहा ही नहीं न ! प्रश्नकर्ता : और जब शुद्ध ज्ञान में ऐसा आता है कि 'जगत् निर्दोष है', तब ये जो ज्ञेय और दृश्य हैं, वे उसे कैसे दिखाई देते हैं ? दादाश्री : वह सब तो शुद्ध ही दिखाई देता है उसे। यह तो पर्याय-बुद्धि की वजह से ऐसा दिखाई देता है और फिर शुद्ध ही है न! शुद्धता प्राप्त करवाए पूर्णता प्रश्नकर्ता : हम ऐसा कहते हैं कि द्रव्य से मैं संपूर्ण शुद्ध हूँ, सर्वांग शुद्ध हूँ। ज्ञान- दर्शनादि गुणों से 'मैं' संपूर्ण शुद्ध हूँ, सर्वांग
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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