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________________ प्रश्नकर्ता : ज्ञान मिलने के बाद प्रतिष्ठित आत्मा तो है ही, तो वह क्या करता है ? फिर उसकी क्या स्थिति है ? दादाश्री : फिर उसकी कोई स्थिति नहीं है, वह डिस्चार्ज के रूप में है। अर्थात् निश्चेतन चेतन है । वह ज्ञेय के रूप में रहता है । फिर, ज्ञेय के रूप में वह 'क्या कर रहा है और क्या नहीं ?' उसे जो जानती है, वह जागृति है। स्वरूप का भान होने से पहले प्रतिष्ठित आत्मा को ही हम ज्ञाता मानते थे। स्वरूप ज्ञान के बाद प्रतिष्ठित आत्मा खुद ही ज्ञेय बन जाता है और वहाँ पर जागृति खुद ही ज्ञाता बन जाती है। यानी कि पहले जो 'मैं' प्रतिष्ठित आत्मा के रूप में था, अब वही 'मैं' जागृति रूपी 'मैं' बन जाता है और मूल आत्मा तो अभी उससे भी आगे है । जब यह जागृति में आ जाएगा, संपूर्ण जागृत हो जाने पर मूल आत्मा में एकाकार हो जाएगा। जब तक संपूर्ण नहीं हो जाता तब तक जुदा रहता है। तब तक अंतरात्मा के रूप में रहता है । वहाँ पर बहिर्मुखी पद छूट चुका होता है । अंतरात्म दशा के खत्म होते ही परमात्मा पद प्राप्त होता है ! है ? 'मैं' का स्थान, शरीर में प्रश्नकर्ता : मनुष्य मात्र जिसे 'मैं' कहता है, वह कहाँ पर रहता दादाश्री : पूरे शरीर में जहाँ पर भी सुई चुभोने पर उसे पता चलता है, वहीं पर ‘मैं' है । सुई को ऐसे चुभोकर देखो, आँखें मींचकर । जब सुई लगेगी तब अपने आप ही आह निकलेगी। नहीं निकलेगी ? प्रश्नकर्ता : निकलेगी। दादाश्री : अत: 'मैं' इस जगह पर रहता है । वह बालों में नहीं है, अगर कोई बाल काटे तो आह नहीं निकलती। कोई नाखून काटे तो आह नहीं निकलती। जहाँ-जहाँ 'मैं' ओ ओ ओ ! करता है, उन सभी जगहों पर वह 'मैं' ही है । बड़ी बस के ड्राइवर का 'मैं' कहाँ पर होता होगा ?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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