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________________ (१.११) जब विशेष परिणाम का अंत आता है तब .... स्वक्षेत्र है दरवाज़ा सिद्ध क्षेत्र का प्रश्नकर्ता : जब देखो तब, दादा आप वैसे के वैसे ही लगते हैं, कोई फर्क नहीं लगता। यह क्या है ? १४९ दादाश्री : क्या यह कोई फूल है जो मुरझा जाए? इनमें अंदर परमात्मा प्रकट होकर बैठे हैं ! वर्ना जर्जरित हुए दिखाई देते ! जहाँ परभाव का क्षय हुआ है, निरंतर स्वभाव जागृति रहती है । जिसे परभाव के प्रति किंचित्मात्र भी रुचि नहीं रही, एक अणु - परमाणु जितनी भी रुचि नहीं है, फिर उसे क्या चाहिए ? परभाव के क्षय से और अधिक आनंद का अनुभव होता है और आप उस क्षय की तरफ दृष्टि रखना । जितना परभाव क्षय होगा उतना ही स्वभाव में स्थित होगा । बस, इतना ही समझने जैसा है, अन्य कुछ करने जैसा नहीं है। जब तक परभाव है तब तक परक्षेत्र है । परभाव गया कि स्वक्षेत्र में कुछ देर रहकर और सिद्ध क्षेत्र में स्थित हो जाएगा। स्वक्षेत्र, वह सिद्ध क्षेत्र का दरवाज़ा है ! तो यह जो फँसा हुआ है, वह किस प्रकार से छूटेगा ? तब कहते हैं कि, 'जब यह खुद के स्वरूप को जानेगा तब छूटेगा और फिर जब वह उस जगह पर पहुँचेगा, जहाँ पर अन्य कोई तत्त्व है ही नहीं, तब अन्य तत्त्व उस पर असर नहीं डालेंगे और तभी खुद मुक्त रह सकेगा। लेकिन यहाँ पर तो सबकुछ है तो दूसरे तत्त्व उस पर असर डाले बगैर रहेंगे ही नहीं। यह बात समझ में आ रही है ? बहुत सूक्ष्म बातें हैं ये सारी । I अन्य तत्त्वों का असर है यह । अब उस असर के खत्म हुए बिना वह मुक्ति किस प्रकार से पाएगा? यदि खुद के स्वरूप को जाने और सेफसाइड हो जाए तो उसके बाद वह वहाँ पर पहुँचेगा। वहाँ पर सिद्धगति में अन्य तत्त्वों के नहीं होने के कारण हमेशा के लिए सिद्ध स्थिति में रहेगा और ऐसा नियम पूर्वक है, यह गप्प नहीं है । बिल्कुल नियम पूर्वक । जैसे एक से सौ तक की रकम होती है न, तो अड़तालीस के बाद उनचास आता है, उनचास के बाद पचास आता है । उसमें बिल्कुल भी गप्प नहीं है। T
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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