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________________ १४६ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) भाव खत्म हो जाता है तब वह प्रज्ञा खुद भी खत्म हो जाती है। तब तक काम करती है। केवलज्ञान के बाद में नहीं रहता विभाव प्रश्नकर्ता : ये जो तीर्थंकर और केवली हैं, वे समय-समय की जागृति में रहते हैं, तो उस समय उनकी जागृति कैसी होती है ? प्रत्येक समय में जो विशेष भाव होते हैं, उन्हें विशेष भाव के तौर पर देखते रहते हैं? दादाश्री : नहीं! उनमें विशेष भाव उत्पन्न ही नहीं होता। प्रश्नकर्ता : यानी कि स्वभाव में ही आ गए? दादाश्री : स्वभाव में आ गए, इसीलिए तो असर नहीं होता। प्रश्नकर्ता : देखना क्या है? सिर्फ पुद्गल को ही देखते हैं? उनकी वह जागृति कहाँ पर रहती है फिर? दादाश्री : सभी ज्ञेयों में। प्रश्नकर्ता : अर्थात् वे स्वाभाविक रूप से ज्ञेय के ज्ञाता-दृष्टा रहा करते हैं? दादाश्री : बस! इतना ही। अन्य कुछ नहीं। एब्सल्यूट अर्थात् सांसारिक विचार आने ही बंद हो चुके होते हैं! 'खुद' खुद के ही परिणाम को भजता (उस रूप होना, भक्ति) है ! वैज्ञानिक ज्ञानी की बातें वैज्ञानिक हैं या नहीं? प्रश्नकर्ता : वैज्ञानिक हैं। दादाश्री : हं, वैज्ञानिक बातों के बारे में अपने शास्त्रों में लोगों ने ये उलझनें खड़ी कर दी हैं। इस सब को उलझाकर रख दिया है जबकि वे लोग (तीर्थंकर) तो जितना बता सकते थे उतना बताकर गए और बाद में कहकर गए, अवक्तव्य और अवर्णनीय। लोगों ने लिखा है कि
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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