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________________ (१.९) स्वभाव और विभाव के स्वरूप ११९ प्रश्नकर्ता : पुद्गल किसके अधीन है ? दादाश्री : वह खुद के द्रव्य के अधीन है। सभी द्रव्य अपने-अपने द्रव्य के अधीन रहे हुए हैं। पकौड़े कहते हैं, 'आपको ठीक लगे तो लो, नहीं तो मत लेना। हम आपके अंदर जाएँगे तब भी हम अपने द्रव्य में ही रहेंगे। आपमें तो आएँगे ही नहीं'। यह तो, वह अज्ञान से ऐसा मानता है कि, 'मैंने यह खाया, पीया'। वह समझता है कि, 'यह द्रव्य मेरे द्रव्य में आ गया। वह सब गलत है। ऐसा मानकर बंधता है, गलत मानने से। अन्य कुछ भी नहीं होता। प्रश्नकर्ता : तो फिर यह पकौड़ा जो मुँह में गया, वह भी पुद्गल के कारण ही गया है, आत्मा के कारण नहीं गया। ऐसा ही हुआ न? दादाश्री : हाँ। पुद्गल ही है। सभी प्रकार के पकौड़े होते हैं, दस-बीस तरह के, लेकिन यदि आप कद्दू के पकौड़े खाते हो तब मैं जान जाता हूँ कि, 'यह कद्दू का क्यों खा रहा है!' आप कहते हो कि, 'मुझे कद्दू का शौक है', ये सब झूठे बहाने बताते हो लेकिन यदि अंदर कद्दू के परमाणु आए हों तभी खा पाते हो। ___ हर एक वस्तु स्वभाव से भिन्न होती है और स्वभाव से भिन्न हुई वस्तु एकाकार नहीं हो सकती। आत्मा और पुद्गल असंगी हैं। दोनों के स्वभाव अलग हैं। कोई किसी की मदद नहीं करता है। कोई किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता। हेल्प भी नहीं करता और नुकसान भी नहीं पहुँचाता। आप खुद ही अपना नुकसान कर रहे हो, वह इसलिए क्योंकि पुद्गल-आश्रित हो। प्रश्नकर्ता : यदि आत्मा विभाव भाव में जाता है, तो वह स्वभाव में कब आएगा? दादाश्री: जो विभाव में गया है, वह अभी तुरंत ही स्वभाव में नहीं आएगा न! जब वह विभाव खत्म होगा तब स्वभाव में आएगा। स्वभाव में आने के बाद में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन विभाव में अर्थात्
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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