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________________ ९६ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) हम क्या करते हैं ? आत्मा और पुद्गल, दोनों को अलग कर देते हैं जिससे वे गण बंद हो जाते हैं। विज्ञान है यह तो, विज्ञान है। महावीर भगवान का विज्ञान ! चौबीस तीर्थंकरों का विज्ञान है यह! भगवान की उपस्थिति से उत्पन्न जगत् आत्मा के बिना कभी शरीर चल सकता है क्या? यह पूरी मशीन? प्रश्नकर्ता : नहीं चल सकता। अंदर आत्मा है तभी चल रहा है न, यह ! वर्ना राम बोलो भाई, राम! दादाश्री : अब इसी प्रकार से आत्मा में चलने का गुण नहीं है। आत्मा की उपस्थिति है तो यह सब चल रहा है, हुकम से नहीं। जैसे कि भगवान महावीर की उपस्थिति में बाघ और बकरी दोनों साथ में पानी पीते थे लेकिन क्या अन्य किसी की उपस्थिति में बाघ और बकरी पानी पीते हैं? प्रश्नकर्ता : नहीं! नहीं पीते। दादाश्री : वहाँ भगवान की उपस्थिति में वे अपना स्वभाव भूल जाते हैं। बकरी अपना डरने का स्वभाव भूल जाती है और बाघ अपना हिंसक भाव भूल जाता है। अतः यह जगत् भगवान की उपस्थिति से उत्पन्न हो गया है। भगवान ने कुछ किया नहीं है। उनके निमित्त से, उपस्थिति का मतलब क्या है कि अभी मैं यहाँ पर बैठा हूँ न, और मान लो एक व्यक्ति अंदर आया और आकर यहाँ घुस गया। अगर उसके पीछे-पीछे दूसरा व्यक्ति उसे मारने आए तो मारने वाला व्यक्ति मारते-मारते जब यहाँ तक पहुँचेगा तो यहाँ मुझे देखकर एक बार तो वह खुद के स्वभाव को भूल जाएगा, मारने की बात भूल जाएगा, शांत हो जाएगा। अब इसमें मैंने उससे कुछ भी नहीं कहा है। वह कुछ भी नहीं जानता। अपने आप ही ऑटोमैटिक सब हो जाता है। यदि यह वहाँ पर बाहर होता तो उसे मार ही देता। मारने वाला तो यहाँ पर उसका नाम तक नहीं लेगा। मैंने उसे मना
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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