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________________ (१.७) छ: तत्त्वों के समसरण से विभाव ८३ प्रश्नकर्ता : उसी को विशेष परिणाम कहा जाता है? दादाश्री : हाँ, विशेष परिणाम। लेकिन वे पुद्गल के माने जाते हैं, आत्मा के नहीं माने जाते। यह पुद्गल तो तत्त्व है ही नहीं। ये परमाणु तत्त्व हैं। प्रश्नकर्ता : तो पुद्गल विशेष परिणाम है? दादाश्री : पुद्गल तो, विशेष परिणाम है। परमाणुओं से पुद्गल बना। पूरण हुआ। उसका वापस गलन होगा। गलन हुआ, पूरण होगा। पूरण हुआ तो गलन होगा। आत्मा के विशेष परिणाम के कारण इस विशेष परिणाम का आभास होता है। हम दर्पण के सामने जो कुछ भी करते हैं, सामने उतना ही परिणाम पता चलता है न! उसी प्रकार से ये सारे विशेष परिणाम उत्पन्न होते हैं। ज्ञानी नज़रों से देखकर कहते हैं... प्रश्नकर्ता : आत्मा को भाव तो होता ही नहीं है न? दादाश्री : होता नहीं है, फिर भी उसका माना जाता है न! उपाधि (बाहर से आने वाला दुःख, परेशानी) भाव की वजह से माना तो जाता है न! वह उत्पन्न होता है। उसमें क्रोध-मान-माया-लोभ हैं नहीं लेकिन फिर भी उत्पन्न होते हैं। वे उपाधि भाव, वे तो व्यतिरेक गुण हैं। प्रश्नकर्ता : यानी कि आत्मा से लिपटे हुए हैं वे। उन्हें संबोधित करके अथवा उनके कनेक्शन में यह बात हो रही है न? दादाश्री : विशेष गुण हैं वे। दोनों के मिलने से तीसरा गुण उत्पन्न हो गया। यह मैंने अपनी नज़रों से देखा है कि यह विशेष भाव से उत्पन्न हुआ है और आज के साइन्टिस्टों को यह समझ में आ सकेगा कि 'आपकी बात करेक्ट है'। प्रश्नकर्ता : तो क्या आज के साइन्टिस्ट इतने होशियार हो गए हैं?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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