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________________ (१.४) प्रथम फँसाव आत्मा का दादाश्री : पुराने (व्यतिरेक) गुण के खत्म हो जाने पर वह सिद्ध बन जाता है। व्यतिरेक गुण उत्पन्न होना बंद हो जाएँ तो सिद्ध बन जाता है। प्रश्नकर्ता : एकेन्द्रिय जीव में वे किस तरह से रहे हुए हैं? क्रोध-मान-माया-लोभ... दादाश्री : वे मूल भाव में रहे हुए हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ के मूल भाव क्या हैं? राग-द्वेष। उस राग-द्वेष में से ये सब अलग हुए, राग में से लोभ और कपट और द्वेष में से मान और क्रोध। इस प्रकार से उसका मूल राग-द्वेष है और राग-द्वेष का मूल क्या है? रुचि-अरुचि। पेड़ों को भी रुचि-अरुचि है, सभी को। एकेन्द्रिय जीवमात्र को रुचिअरुचि है ! अच्छा नहीं लगता लेकिन क्या करें, कोई चारा ही नहीं है न! नापसंदगी का एहसास तो है न? दुःख होता है, ऐसा भान हुआ न? जहाँ दुःख होता है वहाँ पर अरुचि, और फिर सुख भी लगता है। अच्छी हवा चले, बरसात आए तब पेड़ भी खुश हो जाते हैं। पौधे भी खुश हो जाते हैं। बहुत गर्मी हो या बहुत बर्फ गिर रही हो तब सभी पेड़ दुःखी हो जाते हैं। अतः जहाँ देखो वहाँ पर यही हैं, क्रोध-मान-माया-लोभ । प्रश्नकर्ता : यह प्राणी सृष्टि, इनमें चौरासी लाख योनियाँ हैं, ये जो मनुष्य बने, ये सभी व्यतिरेक गुणों से ही उत्पन्न हुए हैं न? दादाश्री : हाँ, सब व्यतिरेक गुणों में से ही हुआ है। प्रश्नकर्ता : तो ये आकार, तरह-तरह के आकार, यह सब... दादाश्री : हाँ, यहाँ पर जब तेज़ बारिश होती है, तब बुलबुले बनते हैं न, तो वे क्या एक ही तरह के होते हैं ? प्रश्नकर्ता : नहीं, अलग-अलग होते हैं, छोटे-बड़े होते हैं। दादाश्री : कोई इतना बड़ा होता है, कोई इतना बड़ा होता है, इतना बड़ा होता है, इतना बड़ा होता है, ऐसा है यह सब। इसमें कहीं भगवान वहाँ पर आकर ऐसा करने बैठे हैं ? यों बुलबुले बनते हैं और फूट जाते हैं, बनते हैं और फूट जाते हैं।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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