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प्रथम फँसाव आत्मा का
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आत्मा कभी भी अशुद्ध हुआ ही नहीं है क्योंकि आत्मा स्वाभाविक वस्तु है। स्वाभाविक वस्तु को प्लास्टर-ब्लास्टर नहीं किया जा सकता। उसके टुकड़े नहीं किए जा सकते। आत्मा के अंश नहीं हो सकते। अंश तो, आवरण में जितने छेद हो गए उतने ही अंश प्रकट होते हैं।
यात्रा, निगोद से सिद्ध तक की प्रश्नकर्ता : यह जो मानव है वह भी आत्मा का विशेष भाव है ? दादाश्री : विशेष भाव ही है सारा! प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह सब चेतन और जड़ दोनों एक ही हैं?
दादाश्री : नहीं, कहीं एक होता होगा? यह तो, चेतन पर जड़ का असर हो गया है और जड़ पर चेतन का असर हो गया है। इसलिए जड़ चेतन वाला हो गया है और चेतन जड़ वाला हो गया है।
प्रश्नकर्ता : चेतन जड़ वाला हो सकता है?
दादाश्री : जड़ वाला अर्थात् उस पर सिर्फ उतना असर ही हुआ है, वास्तव में वह वैसा हुआ नहीं है। वास्तव में तो यह जड़ को हुआ है। वास्तव में असर जड़ पर हुआ है, वास्तव में चेतन पर असर नहीं हुआ है लेकिन चेतन की बिलीफ में असर है। सिर्फ बिलीफ ही बदली है, वह रोंग बिलीफ बैठ गई है।
प्रश्नकर्ता : मानव देह को सर्वोत्तम माना गया है, तो फिर जब यह आत्मा पशु या कीटाणु या जीवाणुओं वाली देह धारण करता है तो क्या वह दुःखद घटना नहीं कहलाएगी, आत्मा के लिए?
दादाश्री : इस अग्नि को बर्फ ठंडा कर सकता है क्या? या फिर बर्फ को छूने से कोई व्यक्ति जल सकता है क्या? बर्फ पर अंगारे लगाएँ तो? तो क्या बर्फ जलेगी? नहीं। आत्मा को कभी भी कुछ होता ही नहीं है। वह तो परमानंदी है और यह तो दूसरा जंग लग गया है।
प्रश्नकर्ता : जीव कौन से कर्म की वजह से निगोद में रहता है ?