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________________ ४० आप्तवाणी-१४ (भाग-१) है। वे सभी तत्त्व तो मुक्त ही हैं। सिर्फ यह चेतन ही बंधा हुआ है क्योंकि 'उसे' ऐसा लगा कि 'यह कौन कर रहा है?' लेकिन वह तो, साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स से अहंकार उत्पन्न हो गया। प्रश्नकर्ता : लेकिन शुद्ध आत्मा में व्यतिरेक गुण भी क्यों आना चाहिए? दादाश्री : वह गुण आत्मा का नहीं है। वह अलग से उत्पन्न हुआ प्रश्नकर्ता : तो अनादि से यह क्रिया शक्ति आत्मा के साथ ही है न? दादाश्री : नहीं! ऐसा कुछ भी नहीं है। प्रश्नकर्ता : एक चीज़ यह है कि आत्मा को अकर्ता तो हम मानते दादाश्री : अकर्ता तो है ही। प्रश्नकर्ता : है ही क्योंकि जिस प्रकार से गर्म लोहे पर मारा हुआ हथौड़ा अग्नि को नहीं लगता, उसी प्रकार आत्मा को कुछ भी नहीं होता। दादाश्री : वही कह रहा हूँ, आत्मा को कुछ भी नहीं होता। यह सब तो अहंकार को ही होता है। अहंकार चला जाए तो फिर कुछ भी नहीं है। ___ अहंकार ही सबकुछ करता है। अहंकार अंधा है, देख ही नहीं पाता बेचारा और वह बुद्धि की आँखों से चलता है। अब यदि बुद्धि कहे, 'वे तो अपने मामा ससुर लगते हैं, तब अहंकार कहता है, 'अच्छा'! भ्रमणाएँ सारी बुद्धि की प्रश्नकर्ता : तो यह सब बुद्धि की ही गड़बड़ है? दादाश्री : बुद्धि के कारण ही यह संसार खड़ा हो गया है। प्रश्नकर्ता : तो बिलीफ भी बुद्धि में ही नहीं है?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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