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________________ २७ अर्थ :- अशिक्षित के आलाप तुल्य कहाँ मेरी स्तुतियाँ और कहाँ आचार्य सिद्धसेन की अर्थ गंभीर स्तुतियाँ ___ एक बार कुमारपाल के साथ हेमचन्द्राचार्यजी शत्रुजय तीर्थ पर दादा के दर्शन के लिए गए और प्रभु के दर्शन के साथ ही उन्होंने महाकवि धनपाल विरचित 'ऋषभ पंचाशिका' द्वारा प्रभु की स्तुति की । बाद में कुमारपाल ने पूछा,' प्रभु ! आप तो स्वयं कवि हो फिर अपनी स्तुतियाँ क्यों नहीं बोले १ नम्रतामूर्ति आचार्यश्री ने कहा. महाकवि धनपाल की ये स्तुतियाँ सद्भक्तिगर्भित है । ऐसी स्तुतियों की रचना की ताकत मुझ में कहाँ है ? स्वर्गगमन श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यजी एक महान् योगीपुरुष थे; साहित्यकार थे ... साक्षात् सरस्वती पुत्र थे... महाकवि थे... जिनशासन के बेजोड प्रभावक थे.... और सचमुच ही वे 'कलिकाल सर्वज्ञ' थे। आचार्यश्री के विद्यमान ग्रन्थों का अवलोकन कर पाश्चात्य विद्वान् आचार्यश्री को Ocecn of .Knowledge 'ज्ञान के महासागर' कहते है । • सिद्धराज और कुमारपाल जैसे नृपतियों को प्रतिबोध कर.... लाखो नर-नारियों को जिनशासन का रसिक बनाकर.. 84 वर्ष के दीर्घायुष्य को पूर्णकर सिद्धस्वरूप के ध्यान में मग्न बनकर आचार्यश्री ने संवत् 1229 में अपने देह का त्याग कर दिया । आचार्यश्री के स्वर्गगमन से कुमारपाल और प्रजाजनों को अत्यन्त ही आघात लगा । कुमारपाल के लिए तो यह विरहवेदना असह्य थी । आचार्यश्री के स्वर्गगमन के छह मास वाद कुमारपाल ने भी समाधिपूर्वक अपना देह छोड दिया ।
SR No.034255
Book TitleSiddh Hemhandranushasanam Part 01
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorUdaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages658
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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