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माटे हितकारी बने छे. अने धर्महीन अश्रद्धालु अने अविवेकी जीवो माटे हानो कर्ता बने छे. अने एथोज शास्त्रकारोए सम्यग्दृष्टीए ग्रहण करेलु सर्व श्रुत सम्यग्श्रुत अने मिथ्यादृष्टीए ग्रह्य सर्वश्रुत मिथ्याश्रुत कह्य छ।
ए हेतुथी विवेकी माटे हितकारी बने ते हेतुथी पूर्वाचार्योए आ के आवा ग्रन्थोनी रचना करो छे. अने ए हेतुने विवेकी आत्माओ सफल बनावे अने निश्रेयना साधक बने एज शुभ अभिलाषा।
२०३८ प्र.-आसो सुद १५
जैन उपाश्रय २. ओसवाल कोलोनी
जामनगर (सौराष्ट्र)
लि०जिनेन्द्रसूरि
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