________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मृत्युमहोत्सव |
[ २१
सहित मरण करो तो फेरि संसारपरिभ्रमणका अभावकरि अविनाशी सुखकं प्राप्त हो जावो तातैं ज्ञानसहित पंडितमरण करना ही उचित है ॥ ७ ॥
जीर्ण देहादिकं सर्व नूतनं जायते यतः ।
स मृत्युः किं न मोदाय सतां सातोत्थितिर्यथा ॥ ८ ॥ अर्थ- जिस मृत्यु जीर्ण देहादिक सर्व छूटि नवीन हो जाय सो मृत्यु सत्पुरुषनिकै साताका उदयकी ज्यों हर्षके अर्थि नहीं होय कहा ? ज्ञानीनिकै तो मृत्यु हर्ष अर्थ ही है । भावार्थ यो मनुष्यनिको शरीर नित्य ही समय समय जीर्ण होय है देवनिका देह ज्यों जरारहित नहीं है दिन दिन बल घंटे है कांति अर रूप मलीन होय है स्पर्श कठोर होय है समस्त नसनिके हाड़निके बंधान शिथिल होय हैं चाम ढीली होय मांसादिकनिकूं छांड़ि ज्वरलीरूप होय है नेत्रनिकी उज्ज्वलता बिगड़े है कर्णनिमैं श्रवण करनेकी शक्ति बटै है हस्तपादादिकनिमें असमर्थता दिन दिन बधै है गमनशक्ति मंद होय है चालते बैठते उठते स्वास बधै है कफकी अधिकता होय है रोग अनेक हैं ऐसी जीर्ण देहका दुःख कहां तक भोगता अर ऐसे देहका
कहां तक होता ! मरण नाम दातार विना ऐसे निंद्यदेहकं astra नवीन देह मैं वास कौन करावे ? जीर्ण देह है तिसमैं बड़ा
For Private and Personal Use Only