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दिगम्बर जैन ।
मृत्युमहोत्सव ।
स्वर्गीय पं. सदासुखजीकृत वचनिका सहित मृत्युमार्गे प्रवृत्तस्य वीतरागो ददातु मे । समाधिबोध पाथेयं यावन्मुक्तिपुरी पुरः ॥ १ ॥
अर्थ – मृत्युके मार्ग प्रवर्त्यो जो मैं ताकूं भगवान वीतराग जो है सो समाधि कहिये स्वरूपकी सावधानी अर बोध कहिये पर लोकके मार्ग मैं उपकारक वस्तु सो देहु जितनैक मैं मुक्ति पुरी प्रति जाय पहुंचूं या प्रार्थना करूं हूं । भावार्थ — मैं अनादिकालतें अनंत कुमरण किये जिनकूं सर्वज्ञ वीतराग ही जानें हैं। एकवार हू सम्यक् मरण नहिं किया। जो सम्यक्मरण करता तो फिर संसार मैं मरणका पात्र नहिं होता जातें जहां देह मर जाय अर आत्माका सम्यग्दर्शन ज्ञानचरित्र स्वभाव है सो विषय कषायनिकर नहीं घात्या जाय सेो सम्यक्मरण है अर मिथ्या श्रद्धानरूप हुवा देहका नाशकूं ही अपना आत्माका नाश जानना । संक्लेश मरण करना सो कुमरण है सो मैं मिथ्यादर्शनका प्रभाव करि देहकूं ही आपा मानि अपना ज्ञानदर्शनस्वरूपका घात करि अनंत परिवर्तन किये सो अब भगवान् वीतरागस ऐसी प्रार्थना करूं हूं जो मेरे मरणके समय मैं वेदनामरण तथा आत्मज्ञानरहित मरण मत होहूक्योंकि सर्वज्ञ वीत
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