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दिगम्बर जैन ।
यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तौ तुमरे जिये कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव वारी ॥ ३४ ॥ श्रेणिकस्त गंगा में डूबो, तब जिननाम चितारो | घर सलेखना परिग्रह छाँड़ो, शुद्ध भाव उर धारो ॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तौ तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ।। २५ ।। समंतभद्र मुनिवरके तनमें क्षुधा वेदना आई । बा दुखमें मुनि नेक न डिगियो, चिन्तो निजगुण भाई || यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तौ तुमार जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव वारी ॥ ३६ ॥ afeteria तीस दोय मुनि, कौशांबीतट जानो । नदीमें मुनि बहकर मूवे, सो दुख उन नहिं मानो ॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तौ तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्युमहोत्सव वारी ॥ ३७ ॥ धर्मघोष मुनि चंपानगरी, वाह्य ध्यान घर ठाढ़ो |
एक मासी कर मर्यादा, तृषा दुःख सह गाहो ॥ यह उपसर्ग सहो घर थिरता, आराधन चित धारी । तौ तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥ ३८ ॥ श्रीदतमुनिको पूर्व जन्मको, बैरी देव सु आके | विक्रिय कर दुःख शीततनो सो, सहो साध मन लाके ॥
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