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समाधिमरण ।
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आगे बहु मुनिराज भये हैं, तिन गहि थिरता भारी । बहू उपसर्ग सहे शुभ भावन, आराधन उर धारी ॥२९॥ तिनमें कछ इक नाम कहूँ मैं, सो सुन जिय चित लाके। भावसहित अनुमोदै तासे, दुर्गति होय न जाके ॥ अरु समता जिन उरमें आवै, भाव अधीरज जावै। योनिशदिन जो उन मुनिवर को, ध्यान हिये विच लावै । ३० । धन्य धन्य सुकुमाल महामुनि, कैसे धीरज धारी। एक श्यालनी जुग वच्चाजुत, पाँव भखो दुखकारी॥ यह उपसर्ग सहो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव वारी॥३१॥ धन्य धन्य जु सुकौशल स्वामी, व्याघ्रीने तन खायो । तो भी श्रीमुनि नेक डिगे नहिं, आतमसों हित लायो। यह उपसर्ग सहोघर थिरता, आराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव वारी ॥ ३२ ॥ देखो गज मुनिके फिर ऊपर, विप्र अगिनि बहु बारी । शीस जले जिम लकड़ी तिनको, तो भी नाहिं चिगारी ॥ यह उपसर्ग सहो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है? मृत्यु महोत्सव वारी॥३३॥ सनतकुमार मुनीके तनमें, कुष्ट वेदना व्यापी ।। छिन्न भिन्न तन तासों हुवो, तब चिन्तो गुण आपी॥
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