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भूमिका। विदित हो कि - रंभाशुकसंवाद छोटासा ग्रंथ बहुत उत्तम है, यह ज्ञानोलोग और रसिकलोग इन दोनोंकोही उपयुक्त है. सब अज्ञलोग तो रात्रदिन संसारसंबंधी विषयोंकोही मर . सुख मानकर उनमें निमग्न हो रहते हैं, ऐसे विषयी जनोंको विषयोंकेही मार्गसे भगवन्नाम और गुणानुवा
में अभिलाषा उपजना जरूर है. इसवास्ते शृंगारगर्भित इस काव्यमें देखिये कि-पहले एक श्लोकमें स्त्रीका (रंभाका) वचन है, तहां शृंगाररस वर्णन किया है, फिर एक श्लोकमें मुनि शुकाचार्यके वचनमें वैराग्यरस वर्णन किया है, ऐसे प्रश्नोत्तर होते गये हैं. यह अति मधुर छोटासा काव्य संस्कृतमात्रही था, परंतु संस्कृतवाणीमें परिश्रम नहीं किये ऐसे सब लोगोंकू इस काव्यकी रसमाधुरी अनायाससे प्राप्त होवे इसलिये हमनें अब श्लोक श्लोकके अनुवादपूर्वक हिंदी सरलभाषा वेरीग्रामनिवासी पंडित वस्तीरामजीसे बनवायकर यह ग्रंथ प्र. सिद्ध किया है. भाषा विस्तारपूर्वक लिखी है और इसमें यह उत्तमता विशेष है कि, श्लोकश्लोकके पद अन्वयके अनुकूलही अर्थ लिखे गये हैं, और राधाकृष्णसंवादभी बडा मनोरम ललित है, आधे श्लोकमें श्रीराधाजीका प्रश्न है और आधेश्लोकमें श्रीकृष्णजीका जबाब है, तिसकी भाषा उत्तम की है सो सब देखनेसे मालूम होवेगा. हरिप्रसाद भगीरथजी.
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