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( २७ )
अर्थ - हे मुरारे ! मैं परपुरुषके वास्ते अपने शरीरको नहीं
दिया चाहती, नरकसे डरती हूं - हे राधे ! नरकके नाश करनेवालेके अर्थ शरीर देनेसे क्या डर है ? ॥ ४ ॥
त्वां बलवीजारमहर्निशं या सीमन्तिनी गायति किं फलं सा ॥ प्राप्नोति राधे व्यभिचारदोषाद्विमुच्यतेऽसौ भवनागपाशात् ॥ ५ ॥
अर्थ- गोपियों में जार तुमको जो स्त्री रातदिन गाती है ( याद करती है ) वह क्या फल लेती है ? हे राधे ! वह व्यभिचारदोषसे और संसाररूपी नागपाश से छूटती है ॥ ५ ॥
निशावसाने तव विप्रयोगात् प्राणा मदीया विकलीभवन्ति ॥ राधे वद प्राणपतेर्वियोगे
प्राणाः कथं नो विकलीभवेयुः ॥ ६ ॥
अर्थ - हे हरे ! रात्रीके अंतमें तुम्हारे वियोग होनेविषे मेर प्राण विकल होते हैं ? हे राधे ! प्राणपतिके वियोग में प्राण विकल क्यों न होवें ? ॥ ६ ॥
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