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(२२) मृषा वदन्ती कलिता च येन
वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ३५॥ अर्थ-शुकमुनि बोले-हे रंभे ! अपवित्र देहवाली, पतित स्वभाववाली, शरीरसे प्रगल्भा ( भरक्षमताधाष्टर्यता) वाली, बलकर लोभयुक्त स्वभाववाली, झूठ बोलती हुई, ऐसी स्त्री जिसने भोगी, उस नरका जीवना व्यर्थ गया है ॥ ३५॥
रम्भोवाच ॥ क्षामोदरी हंसगतिः प्रमत्ता - सौन्दर्यसौभाग्यवती प्रलोला॥ निष्पीडिता चेन्न रतौ यथेच्छं _वृथा गतं तस्य नरस्य जीवितम् ॥ ३६॥
अर्थ-रंभा बोली-हे मुने ! पतला और त्रिवलीयुक्त उदरवाली, हंससरीखी चालवाली, मदसे भरी हुई, सौंदर्य और सौभाग्यसे युक्त, अत्यंत चपला, ऐसी मनोहर स्त्री जिसने इच्छापूर्वक रमणसमयमें नहीं भोगी है, उस नरका जीवना व्यर्थ गया ॥३६॥
शुक उवाच ॥ संसारसद्भावनभक्तिहीना
चित्तस्य चोरा हृदि निर्दया च ॥
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