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इस प्रकार अपनी थकावट को दूर करते हैं। इस प्रकार संसार के प्राणी कषायों से लिप्त होकर गोता लगाते हैं। जन्म से मृत्यु तक कषायों में इस प्रकार जकड़े हुए रहते हैं कि उन्हें सही चिन्तन का अवसर ही नहीं मिलता
और अन्त में वे थक जाते हैं और मृत्यु को प्राप्त करते हैं । अपने कर्मों के अनुसार वे पुनः नया जीवन धारण करते हैं।
वास्तव में मृत्यु तो जीवन का सार है। व्यापारी साल भर व्यापार करता है, लेन-देन करता है लेकिन साल के अन्त में उसे यह पता चलता है कि उसे लाभ हुआ या हानि ? इस प्रकार मृत्यु होने पर जीवन का लेखा-जोखा देखा जाता है । वह व्यक्ति कैसा था, उसका जीवन कितना धर्ममय या पापमय था, उसमें कौन से २ सद्गुण विकसित हुए थे, धर्म, समाज एवं देश की उसने क्या सेवा की, इन सब बातों का निष्कर्ष या सार मृत्यु पर निकाला जाता है। इसीलिए मृत्यु जीवन की पूर्णता है, जीवन का निष्कर्ष है और यथार्थ की अभि व्यक्ति है।
- इस संसार में जीने वाले हर व्यक्ति को एक दिन जाना होता है, किसी भी समय वह क्षण उपस्थित हो सकता है। इसीलिये व्यक्ति स्वयं को सम्भाले, अपने को धर्मराधना से जोड़कर रखे और भेद विज्ञान का अभ्यास
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