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मृत्यु मंगलमय बन जाती,
जब जीवन में समता आए । दिव्य ज्ञान की ज्योति प्रकटे,
राग-द्वेष से नाता छूटे ।
मृत्यु जीवन का नवनीत है,
जीवन का वह दर्पण है । उसको पाये बिना न मिलता,
शिवपद का अनुपम आनन्द ।।
मृत्यु जीवन की स्वर्णिम बेला,
सहर्ष उसे अपनाएँ हम । राग-द्वेष से सम्बन्ध तजकर,
समता को जीवन में लाएँ ।
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