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स्वागत के लिए तैयार रहें। एक अच्छे ईश्वर भक्त आदमी से जब उसकी अन्तिम बीमारी में पूछा गया कि क्या वह मृत्यु का अनुभव कर रहा है ? तो उसने उत्तर दिया कि-'मित्र, मैं जीवित रहँगा या नहीं इसकी मुझको चिन्ता नहीं है क्योंकि यदि मैं बच गया तो मैं परमात्मा के साथ रहँगा और यदि मैं मर गया तो परमात्मा मेरे साथ रहेगा। अच्छे. आदमी नहीं मरते अपितु बुरे व्यक्ति ही मरते हैं। अच्छे व्यक्ति मरने पर धूल में से उठकर यश के सोपान पर पैर रखते हैं। अच्छे व्यक्ति संत कवि । तुलसीदासजी की इन पंक्तियों को सदा स्मरण रखते हैं"जब मेरा जन्म हुआ, तब मैं रोया तथा दूसरे हँसे थे। अब ऐसा जीवनयापन करूँ कि मृत्यु के समय मैं हँसू और दूसरे रोएँ।" ठीक इन्हीं भावों को दूसरे रूप में बंगाल की प्रचलित एक कहावत में इस प्रकार कहा गया है'यदि ठीक ठोक मरना जानो तो समझना कि तुम्हारा साधन-भजन भी ठीक-ठीक हुआ है।"
मृत्यु जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को अमंगल एवं अशुभ कहकर न टाला जाय, बल्कि उसके सम्यक् चिन्तन की आवश्यकता है। यदि इसका सही चिन्तन तथा मनन किया जाए तो उससे मिलने वाले नवनीत से अवश्य ही हमारे जीवन को एक नई दिशा और ज्योति मिलेगी
और हम मानव-जीवन को सफल कर सकेंगे। और अन्त में यह कविता, इसके भावों को आप हृदयंगम करें
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