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रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा-"हम मृत्यु का प्रिय अतिथि एवं मित्र की भांति स्वागत करने की कला भूल गए हैं, अतः हमें मृत्यु महान् शत्रु की भांति आती हुई प्रतीत होती है।" नोबल पुरस्कार विजेता एलबर्ट श्वीतजर कहते हैं- "किसी मनुष्य को मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है। उसे इस बात से अवश्य डरना चाहिए कि कहीं वह अपनी सबसे बड़ी शक्ति को बिना जाने हुए न मर जाये-दूसरों के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने की प्रबल इच्छा शक्ति ।" ।
मृत्यु का वरण करने के लिए हमें प्रतिपल तैयार रहने की आवश्यकता है। अपने जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ न चला जाए । जीवन का प्रत्येक क्षण अमूल्य है। भगवान महावीर ने अपने प्रमुख शिष्य गौतम स्वामी को कहा
'समयं गोयम मा पमायए'
हे गौतम ! एक समय मात्र का भी प्रमाद मत करो।
वास्तव में जो जीवन जीने की यह कला जानते हैं, वे मृत्यु को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।
मृत्यु और शोक जीवन और मृत्यु एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्रायः यह देखा जाता है कि जन्म के समय में तो खुशियाँ
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