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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयसेन सूरिजी अकबर के दरबार में कितने ही पंडितों को परास्त करते हुए अपनी धवल कीर्ति को चारों ओर फैलाने में उत्कृष्ट १०८ आठ अवधान किये, उन सभा में मारवाड़ के राजा मल्लदेव के पुत्र उदयसिंह, कच्छ के भूपति मानसिंह, खानखाना, शेख, अबुलफजल, आजमखान जालोर के गजनीखान आदि बहुत से बड़े बड़े राजा महाराजा और अफसर लोग उपस्थित थे, नंदीविजय का अद्भूत कला कौशल देखकर चकित होता हुआ बादशाह ने सभा में विजयसेन सूरिजी के समक्ष नंदीविजय को "खुशफ-हेम' की उपाधि से विभूषित किया। एक समय विजयसेन सूरिजी से अकबर ने पूछा कि जगद् गुरुदेव का स्वास्थ्य कैसा है ? किस देश और कौन नगर में बिराजमान हैं ? जनतागण गुरुदेव की भक्ति कैसे करते हैं और मेरे लिये , क्या फरमाया है ? इन प्रश्नों का उत्तर विजयसेन सूरिजी देने लगे हे राजेन्द्र ! आपके साम्राज्य में रहते हुए जगद्गुरु सब तरह से सुख शान्तिमय समय व्यतीत कर रहे हैं एवं सम्प्रति समाधि में लयलीन होकर ईश्वर की उपासना करके प्रभु को प्रसन्न कर रहे हैं, गुजरात के अन्तर्गत राधनपुर नगर में विराजमान हैं जनतागण आपकी भक्ति में रह कर अमूल्य लाभ उठा रहे हैं, आपके लिये सर्व प्रथम धर्मलालात्मक आशीर्वाद देकर फरमाया है कि सब प्राणियों को अपने आत्म तुल्य समझते रहें, एवं धर्म कार्य द्वारा अपने जीवन का विकास करते हुए अपनी प्रजा को प्रजा-संतान ही समझते रहें। सूरिजी की मधुरता,-सरलता, चतुरता और वाकपटुता को देख सुनकर हंसते हुए अकबर ने सभा को हर्षित कर दिया। विजयसेन सूरि आदि सशिष्य हीरसूरिजी के चरणों में अनुरक्त अकबर को देख जैनेतर धर्मावलम्बी सब लोग कहने लगे For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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