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नहीं जाणेगा, आगे सु श्री हेमा आचारजी ने श्री राजन्हें मान्या है जीरो पटो कर देखानो जि माफक आपरा पगरा भट्टारक गादीप्र आवेगा तो पटा माफक मान्या जावेगा। हेमाचारजी पेला श्री वडगच्छ रा भट्टारकजी ने बड़ा कारण सु श्री राज म्है मान्या जि माफक अपने आपरा पगरा गादी प्र पाटही तपागच्छराने मान्या जावेगा री सुवाये दै सम्हे आपरा गच्छ रो देवरो तथा उपासरो वेगा जीरो मुरजाद श्री राज सु. वा. दुजा गच्छरा भटारक आवेगा सो राखेगा श्री समरण ध्यान देव यात्रा जेठ आद करावसी ने वेगा पदारसी प्रवानगी पंचोली गोरो।सं. १६४५ रा वर्षे आसोज सुद ५ गुरुवार ।
__ इधर स्तम्भनतीर्थ विजयसेन सूरिजी के पहुंचने पर भावी प्रतिष्ठा का कार्यक्रम शुरू हो गया। इस कार्यक्रम के संचालक विजया राजिया नामक श्रावक थे सं० १६४५ ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी के दिन उत्तम मुहुर्त में विजयसेनसूरिजी के कर कमलों द्वारा श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ तथा महावीर स्वामी की प्रतिष्ठा की और सप्त फणी पार्श्वनाथ की प्रतिमा ४१ इंच की मुख्य गादी पर स्थापन की।
प्रतिष्ठा के बाद "विजया राजिया" नामक दोनों भाइयों ने एक मन्दिर और बनवा कर आपही के कर कमलों द्वारा प्रतिष्ठा करवाई। इस मन्दिर में बारह स्तम्भ छः द्वार, सात देव कुलिका (देवरीया) और २५ सोपान (सीढी) है, जिसमें आदीश्वर पार्श्वनाथ महावीर भादि २५ जिनबिम्ब यथा योग्य स्थान पर स्थापित किये। ___ उपाध्याय शान्तिचन्द्रजी के स्थान पर भानुचन्द्र और सिद्धिचन्द्र दोनों गुरु शिष्य अकबर के दरबार को सुशोभित करने लगे, (भानु चन्द्रजी बाण भट्ट कृत कादम्बरी के प्रसिद्ध टीकाकार हैं) आपने अकबर को सूर्य सहस्त्र नाम स्तोत्र पढ़ा कर तेजस्वी बना दिया। सिद्धि चन्द्र सदृश शतावधानी थे और फारसी के अच्छे जानकार थे। अतएव इनके ऊपर बादशाह का विशेष प्रेम होने के कारण "खुशफ-हेम" की
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