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• प्राक्कथन छ
नाम रहंता ठाकुर, नाणा नहीं रहंत,
कीति केरा डुगरा, पाड्या नहीं पडंत । इस परिवर्तनशील संसार में श्री, धन, वैभव, कुटुम्ब परिवार आदि कोई भी चीज चिरस्थायी अथवा स्थिर नहीं है, चूकि धन चोर ले जा सकता है महल मंदिर तोड़ा जा सकता है, कुटुम्ब परिवार अस्त होने वाले हैं और प्रतिष्ठा में भी मानहानि का भय रहा हुआ है, एक ही चीज संसार में सदा स्थिर रह सकती है और उसके बिना मानव का जीवन निरर्थक है, वह केवल कीर्ति, चाहे हम उसे जश कह सकते हैं, यह कीर्ति रूप पहाड़ सर्वदा अमर है, न तो कोई तोड़ सकता है और न कोई उसे छीन सकता है। यह सदा शाश्वत है, नीतिकार भी कहते हैं कि- “कीर्तिर्यस्य स जीवति" जिसकी संसार में कीर्ति है, वही मानव जिन्दा है, आज उन महापुरुषों को उषा के समय याद किया करते हैं, यद्यपि हमने उनको देखा नहीं, फिर भी बड़े चाव से उनका नाम लिया करते हैं, इसीलिये कि वे महापुरुष गुण रूप सुगंधी संसार में छोड़कर चले गये।
आज भी कोई मानव अपने जीवन को आदर्शमय व्यतीत कर चल बसता है तो उसके नाम पर स्मारक आदि बनाया जाता है। यहां जो बात लिखी जा रही है, वह उस जमाने की बात है जब भारत के सर्वेसर्वा मुगल सम्राट अकबर बादशाह का एक छत्र साम्राज्य था, संसार में हिंसा का बोलबाला था, मंदिर और मूर्तियां तोड़ी जा रही थी, स्वयं अकबर भी बड़ा हिंसक था जो कि सवा सेर चीडियों की
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