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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंश काट कर मांसाहारियों को देने के बाद यदि वह अंश वापिस प्राप्त होता तो भी मैं बहुत प्रसन्न होता । मैं अपने शरीर द्वारा मांसाहारियों को तृप्त कर सकता।" धन्य है प्रतापी जगद् गुरुदेव को कि आप के प्रभाव से एक हिंसक मुगल सम्राट अकबर ने अहिंसा परमो धर्म का पालन कर भारत में दया भागीरथी को बहा दी। बादशाह के ये सब कार्य कर देने पर जगद् गुरुदेव को खुश खबर देने एवं दर्शन करने के लिये उपाध्याय शान्तिचन्द्रजी ने अकबर से अपने गुरुजी के चरणों से जाने की इजाजत मांगने पर अकबर के आग्रह से अपने सहाध्यायी पण्डित भानुचंद्रजी को दरबार में बैठा कर आप गुजरात की तरफ रवाना होकर मार्ग में उपदेशामृत की वर्षा करते हुए यथासमय पटन (पाटण) आ पहुँचे । तत्रस्थ जगद् गुरुदेव को सविधि वन्दना के पश्चात् किये हुए अकबर के कार्यों को सुनाते हुए प्राप्त फरमान पत्र को चरण कमल में भेंट कर गुरु दर्शन से प्रफुल्लित हुए, सूरिजी उपाध्यायजी के किये हुए कार्यों पर प्रसन्न होकर मन ही मन प्रशंसा करते हुए आम जनता को खुश खबरी बातें सुनाने लगे। ___ इधर श्री विजयसेन सूरिजी भंवरा की तरह विचरते हुए दो चातुर्मास के बाद सं० १६४२ का चातुर्मास करने के लिये पतन नगर में आ पहुँचे। कुछ समय के बाद परगच्छीय आचार्य से धर्म सागरजी के बनाये हुए "प्रवचन परीक्षा' नामक ग्रन्थ से आपने शास्त्रार्थ प्रारम्भ किया, यह वादविवाद लगातार चौदह रोज तक राज सभा में होता रहा, अन्त में सूरिशेखर विजयसेनसूरिजी की जय हुई। परगच्छीय आचार्य की अप्रतिष्ठा होने पर आपके भक्तगण रुष्ट होकर अमदाबादस्थ कल्याणराज नामक साधु को बहकाया कि For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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